जरबेरा फूल की खेती (Gerbera flower farming)
जरबेरा एक विदेशी और सजावटी
फूल का पौधा है जो पूरी दुनिया में उगाया जाता है और जिसे ‘अफ्रीकन डेजी’ या ‘ट्रांसवाल
डेजी’ के नाम से जाना जाता है। इस फूल की उत्पत्ति अफ्रीका और एशिया महादेश से
हुई है और यह ‘कंपोजिटाए’ परिवार से संबंध रखता है। भारतीय महाद्वीप में, जरबेरा कश्मीर
से लेकर नेपाल तक 1200 मीटर से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसकी ताजगी
और ज्यादा समय तक टिकने की खासियत की वजह से इस फूल का इस्तेमाल पार्टियों, समारोहों
और बुके में किया जाता है। भारत के घरेलु बाजार में इसकी कीमत काफी अच्छी है।
भारत में जरबेरा कट फूल के प्रमुख उत्पादक राज्य-
पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र,
आंध्रप्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और अरुणाचलप्रदेश।
भारत में जरबेरा की अधिक उपजाऊ वाली संकर किस्में-
लाल रंगीन- रुबी रेड, डस्टी, शानिया, साल्वाडोर, तमारा, फ्रेडोरेल्ला, वेस्टा
और रेड इम्पल्स
पीला रंगीन- सुपरनोवा, नाडजा, डोनी, मेमूट, यूरेनस, फ्रेडकिंग, फूलमून, तलासा
और पनामा
नारंगी रंगीन- कोजक, केरैरा, मारासोल, ऑरेंज क्लासिक और गोलियाथ
गुलाबी रंगीन- रोजलिन और सल्वाडोर
मलाई रंगीन- फरीदा, डालमा, स्नो फ्लेक और विंटर क्वीन
सफेद
रंगीन- डेल्फी और व्हाइट मारिया
बैंगनी रंगीन- ट्रीजर और ब्लैकजैक
गुलाबी रंगीन- टेराक्वीन, पिंक एलीगेंस, एसमारा, वेलेंटाइन और मारमारा
जलवायु-
जरबेरा फूलों को उष्णकटिबंधीय
और उपोष्णकटिबंधीय प्रदेश दोनों ही तरह की जलवायु में पैदा किया जा सकता है। ऐसे फूलों
की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में खुले खेतों में की जा सकती है। ऐसे फूल पाला वाली
स्थिति को लेकर संवेदनशील होते हैं, इनकी खेती पौधा घर (गरम घर), जालीदार पर्दा वाले
घरों में उपोष्णकटिबंधीय या समशीतोष्ण जलवायु में की जाती है। जरबेरा की खेती के लिए
दिन का सर्वोत्कृष्ट तापमान 20 डिग्री से 25 डिग्री सेंटीग्रेड और रात्रिकालीन तामपमान
12 डिग्री से 15 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच आदर्श माना जाता है।
मिट्टी-
मिट्टी अच्छी तरह से सूखी,
हल्की, उपजाऊ, हल्की क्षारीय या प्रकृति में तटस्थ हो। जरबेरा की खेती के लिए पीएच
का मान 5.5 से 6.5सबसे उपयुक्त मानी जाती है। जैसा कि पता है कि जरबेरा पौधे की जड़ें
मिट्टी के काफी अंदर तक जाती हैं (करीब 60 सेमी), ऐसे में मिट्टी सुराखदार होनी चाहिए
और आंतरिक जलनिकासी (50 सेमी गहराई) अच्छी होनी चाहिए ताकि जड़ों का विकास सर्वोत्कृष्ट
हो सके।
भूमि या खेत की तैयारी-
देसी हल या ट्रैक्टर से
खेत की तीन बार अच्छी तरह से जुताई करें ताकि खेत अच्छी तरह से तैयार हो जाए। क्यारी
को 30 सेमी ऊंचा, एक मीटर से डेढ़ मीटर तक चौड़ा और दो क्यारियों के बीच 35 सेमी से
50 सेमी की जगह छोड़ते हुए तैयार करें। अच्छी तरह से गला हुआ फार्म की खाद, बालू और
धान की भूसी को 2:1:1 के अनुपात में मिलाकर तैयार की हुई क्यारियों पर डालें।
मिट्टी का रोगाणुनाशन या कीटाणुनाशन-
जरबेरा की खेती से पहले
फसल को मिट्टी जनित बीमारियों से बचाने के लिए मिट्टी का विसंक्रमण या रोगाणुनाशन अच्छी
तरह से जरूर किया जाना चाहिए। मुख्य रुप से मिट्टी जनित तीन तरह के रोगाणु होते हैं,
उदाहरण के तौर पर, फुसेरियम, फाइटोफथोरा और पाइथियम। अगर मिट्टी का विसंक्रमण नहीं
किया गया तो ये रोगाणु पूरी फसल को बर्बाद कर देंगे। तैयार की गई मिट्टी की क्यारियों
को मिथाइल ब्रोमाइड (30 ग्राम प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र) का घोल या दो फीसदी फोरमेल्डिहाइड
(प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में 5 लीटर पानी में 100 एमएल फोरमोलिन) का घोल या मिथाइल
ब्रोमाइड (30 ग्राम प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र) के घोल से धुंआ करना चाहिए। धुंआ किए
गए क्यारियों को एक प्लास्टिक शीट से कम से कम तीन से चार दिनों के लिए ढंक दें। क्यारियों
से रसायन को निकालने के लिए इसमे पानी डालना चाहिए।
पौधारोपण का मौसम-
जरबेरा की खेती वसन्त
ऋतु के साथ-साथ ग्रीष्म ऋतु में भी की जा सकती है। जरबेरा को अच्छी और अधिकता के साथ
रोशनी की जरूरत होती है, डेढ़ वर्षीय ऊतक संवर्धन के लिए इसकी रोपाई वसन्त ऋतु में
(जनवरी से मार्च) करने से बहुत अच्छा रहता है। एक, डेढ़ और दो वर्षीय ऊतक संवर्धन के
लिए ग्रीष्म ऋतु (जून से जुलाई) अनुकूल मानी जाती है। रोपाई या पौधा रोपण के लिए शरद
और शीत ऋतु (नवंबर से दिसंबर) की अनुशंसा नहीं की जाती है क्योंकि इस दौरान उच्च तापमान
खर्च होता है और रोशनी की अधिकता में कमी पाई जाती है। अगस्त के आखिरी में या सितंबर
में रोपाई के काम को नजरअंदाज करना चाहिए क्योंकि यह शीत ऋतु को बर्दाश्त नहीं कर सकता
है।
प्रजनन या प्रसारण-
व्यावसायिक तौर पर जरबेरा
के पौधा का प्रजनन पौधे की महीन जड़ (चूषक) और ऊतक संवर्धन के माध्यम से होता है। जरबेरा
की खेती में दो तरीके के प्रजनन का इस्तेमाल किया जाता है, विभाजन और सूक्ष्म प्रजनन
का।
विभाजन-
इस पद्धति में,
प्रजनन जून-जुलाई महीने में पेड़ों के झुरमुट या गुच्छ में विभाजन कर के किया जाता
है और इसी पद्धति का आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
सूक्ष्म प्रजनन-
तेज और बड़े पैमाने
पर उत्पादन के लिए यह पद्धति दिन-ब-दिन बहुत तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। इस पद्धति
में फूल का सिर, शाखा का सिरा, फूल की कली, पुष्पवृन्त, फुनगी (बाली) और पत्ती की बीच
वाली नस का इस्तेमाल पूर्ववर्ती पौधे के तौर पर की जाती है।
पौधारोपण की पद्धति-
क्यारी में जरबेरा की
खेती हवा के बहाव और जलनिकास को बेहतर करता है। पौधारोपण के दौरान जब जड़ की व्यवस्था
स्थापित होती है उस वक्त जरबेरा के पौधे के शिखर को मिट्टी के स्तर से एक से दो सेमी
ऊपर रखना चाहिए और जमीन के स्तर से नीचे रखना चाहिए।
दो पौधों में अंतराल-
पंक्ति या कतार के भीतर
25 से 30 सेमी का अंतराल और कतारों के बीच 30 से 40 सेमी की दूरी होनी चाहिेए ताकि
प्रति वर्ग मीटर 7 से 10पौधे आ जाएं।
खाद और ऊर्वरक-
जरबेरा फूल की अच्छी बढ़त
और बेहतरीन पैदावार के लिए खेत में भरपूर मात्रा में जैव खाद और दूसरे महत्वपूर्ण और
कम महत्वपूर्ण पोषक तत्व इस्तेमाल करें। जरबेरा की खेती में डाले जाने वाले खाद और
ऊर्वरक की मात्रा निम्न है-
– प्रति वर्ग मीटर 8 से
9 किलोग्राम फार्म की खाद का इस्तेमाल करें।
– पौधारोपण के शुरुआती
तीन महीनों के दौरान नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश (एनपीके) का 12:15:20 ग्राम इस्तेमाल
करें।
– चौथे महीने के बाद जब
फूल आना शुरू हो जाता है तब नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश (एनपीके) 15:10:13 ग्राम प्रति
वर्ग मीटर प्रति महीना इस्तेमाल करें। इन्हें दो-दो टुकड़े में बांट दें और प्रति दो
सप्ताह के अंतराल पर इस्तेमाल करें।
– सूक्ष्म-पोषक तत्वों
का इस्तेमाल करें- कैल्सियम, बोरोन, कॉपर और मैग्नेशियम 0.15 फीसदी की दर से प्रति
लीटर 1.5 ग्राम होना चाहिए जिन्हें चार सप्ताह में एक बार छिड़काव करें। इससे जरबेरा
फूल की गुणवत्ता काफी बढ़ जाती है।
सिंचाई-
पौधारोपण के तुरंत बाद
सिंचाई की जरूरत होती है और जड़ें अच्छी तरह से जड़ जमा ले इसके लिए एक महीने तक लगातार
सिंचाई करते रहें। उसके बाद प्रति दो दिन पर एक बार टपक सिंचाई की जानी चाहिए। इसमें
प्रति पौधा 4 लीटर 15 मिनट के लिए सिंचाई की जानी चाहिए। प्रति पौधा प्रति दिन पानी
की औसत जरूरत 700 मिली लीटर होती है।
घास-फूस नियंत्रण-
जरबेरा की खेती में घास-फूस
नियंत्रण एक महत्वपूर्ण अभियान है और यह कार्य पौधारोपण की शुरुआत के तीन महीने तक
दो सप्ताह में एक बार करना चाहिए। तीन महीने के बाद, अगला घास-फूस नियंत्रण का कार्य
30 दिनों के अंतराल पर किया जाना चाहिए। जब कभी जरूरत हो हाथ से घास-फूस को निकालने
का काम करना चाहिए। निम्न घास-फूस नियंत्रण अभियान का पालन करें-
– आठ सप्ताह (दो महीने)
के जरबेरा फूल की कली को निकाल दें और उसके बाद पुष्पन यानी विकसित होने के लिए छोड़
दें।
– जड़ों में पानी, खाद
के अच्छी तरह अवशोषण के लिए और जड़ों में हवा के अच्छी तरह आवागमन के लिए दो सप्ताह
में एक बार मिट्टी को उलट-पलट कर दें।
– हमेशा पुरानी पत्तियों
को हटा दें ताकि नई पत्तियां विकास कर सकें।
हानिकारक कीट और बीमारियां-
जरबेरा के पौधे में पाए जाने वाले प्रमुख कीट-
एफिड्स-
इस पर नियंत्रण
के लिए दो एमएल पानी में डिमेथोएट 30 ईसी मिलाकर छिड़काव करें।
थ्रिप्स-
इस पर नियंत्रण
के लिए दो एमएल पानी में डिमेथोएट 30 ईसी मिलाकर छिड़काव करें।
व्हाइटफ्लाई-
इस पर नियंत्रण
के लिए दो एमएल पानी में डिमेथोएट 30 ईसी मिलाकर छिड़काव करें।
रेड स्पाइडर माइट-
इस पर नियंत्रण
के लिए 0.4 एमएल पानी में अबामेसटीन 1.9 ईसी मिलाकर छिड़काव करें।
नेमाटोड-
इस पर नियंत्रण
के लिए पौधारोपण के वक्त मिट्टी में ढाई किलोग्राम सूडोमोनासफ्लूरेसेंस प्रति हेक्टेयर
इस्तेमाल करें।
मुख्य रोग-
फूल की कली का सड़ जाना-
इस पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में दो ग्राम की दर से कॉपर
ऑक्सीक्लोराइड को मिलाकर छिड़काव करें।
पाउडर फफूंद-
इस पर नियंत्रण के लिए अजोक्सीस्ट्रोबिन की एक ग्राम मात्रा एक
लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फसल कटाई-
आमतौर पर पौधारोपण के
तीन महीने के बाद जरबेरा के पौधे में पुष्पण शुरू हो जाता है। जब फूल पूरी तरह खुले
हुए होते हैं या डंठल में बाहरी फूल की दो से तीन कतारें सीधी खड़ी रेखा में आ जाती
हैं तब फसल की कटाई की जाती है। फूल की जिंदगी को और लंबा करने के लिए फूल के डंठल
को सोडियम हाइपोक्लोराइड (6 से 7 मिली प्रति एक लीटर में) के घोल में पांच घंटे के
लिए डूबा देना चाहिए।
फसल कटाई के बाद-
डंठल के आधार से करीब
दो से तीन सेमी उपर काटना चाहिए और उसे ताजा क्लोरीन मिले पानी में रखना चाहिेए। फूल
को छांट लेना चाहिए, एकरुपता के लिए क्रम में लगा देना चाहिए और कार्टून के बक्से में
पैक कर देना चाहिए।
पैदावार-
कोई भी फसल की पैदावार
खेत प्रबंधन के तौर-तरीकों और मिट्टी की किस्मों पर निर्भर करता है। खुले तौर पर और
पौधा घरों में जरबेरा की खेती करने से निम्न पैदावार होती है-
– खुले मैदान में या जालीदार
शेड की खेती- 140 से 150 कटे हुए फूल प्रति वर्ग मीटर प्रति साल पैदावार की आस होती
है।
– पौधा घरों में खेती-
225 से 250 कटे हुए फूल प्रति वर्ग मीटर प्रति साल हासिल किया जा सकता है।
सौ बात की एक बात-
यह एक बेहतरीन फायदेमंद
उगाई जानेवाली फसल है जिसका पूरे भारत में और स्थानीय बाजार में भी बेहतरीन मूल्य मिलता
है।