रसभरी की खेती (farming of Raspberry)
रास्पबेरी एक स्वादिष्ट और पौष्टिक खाने योग्य फल है जो प्राकृतिक
तौर पर ठंडे जलवायु क्षेत्र में बढ़ते हैं, हालांकि इसकी खेती अधिकांश जलवायु क्षेत्र
में हो सकती है। रास्पबेरी की खेती ताजे फल बाजार और व्यावसायिक प्रोद्योगिकी के लिए
होती है, जिसमे अलग-अलग तेजी से जमनेवाले फल, प्यूरी, रस या सूखे फल जैसे कई प्रकार
के रसोई संबंधी उत्पाद किए जा सकते हैं। रास्पबेरी उपजाना बेहद मजेदार है और लगातार
इसकी प्रसिद्धि बढ़ रही है। ऐसे फल हाथ से तोड़े जा सकते हैं और स्ट्राबेरी के ठीक
बाद और ब्लूबेरी के ठीक पहले तैयार हो जाते हैं। रास्पबेरी की पूरी फसल की उम्मीद पौधारोपन
के तीन साल बाद की जा सकती है और इसके पेड़ 10 से 15 साल तक फल देते रहते हैं। रास्पबेरी
”रोज” परिवार और ”रुबस” प्रजाति की है। रास्पबेरी को बर्तन, गमला और घर के पीछे आंगन
में भी लगा सकते हैं। बागवानी और खेतीबाड़ी के उपयुक्त तौर-तरीके अपना कर कोई भी अच्छे
मुनाफे की उम्मीद कर सकता है। अगर रास्पबेरी की खेती व्यावसायिक मकसद से करना है तो
इसके लिए अच्छे तरीके से मिट्टी की जांच और दूसरे उपाय अपनाने चाहिए। रास्पबेरी का
फल पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े अन्य फायदों के लिए बेहतरीन श्रोत है।
रसभरी के स्वास्थ्य संबंधी लाभ-
रसभरी या रास्पबेरी के स्वास्थ्य संबंधी फायदे निम्न हैं-
वजन प्रबंधन में मददगार
झुर्रियां कम करने में सहायक
दाग-धब्बे की विकृति को रोकने में मदद
संक्रमण और कुछ तरह के कैंसर को रोकता है
प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाने में सहायक
स्त्री स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है
उच्च पोषक तत्वों से भरपूर
बुढ़ापे को रोकने वाले तत्व
त्वचा के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद
रसभरी के प्रकार-
मूल रुप से रास्पबेरी समर बीयरर्स यानी गर्मी बर्दाश्त करनेवाला
और एवर बीयरर्स यानी हमेशा बर्दाश्त करने वाला, दो प्रजातियों में पाया जाता है। सामान्य
तौर पर समर बीयरर्स एक मौसम में एक फसल देता है और वो गर्मी के मौसम में भी, जबकि एवर
बीयरर्स प्रत्येक साल दो फसल देता है, एक गर्मी में और दूसरा शरद ऋतु में। पूरी दुनिया
में रास्पबेरी की कुछ और मुख्य किस्में उगाई जाती है, वो है- समर रेड रास्पबेरीज, ब्लैक
रास्पबेरीज, एवर बियरिंग रेड रास्पबेरीज, पर्पल रास्पबेरीज और गोल्डन रास्पबेरीज। भारत
में अधिकांश जगहों पर मैसूर रास्पबेरीज किस्म की खेती होती है।
रसभरी की खेती के लिए आवश्यक जलवायु-
रास्पबेरी को कई तरह की जलवायु या मौसम में लगाया जा सकता है। हालांकि
यह सबसे अच्छा ठंडे मौसम में फलता-फूलता है। रसभरी कुछ हद तक छाया को बर्दाश्त कर लेती
है लेकिन सूर्य की पर्याप्त रोशनी में अच्छी बढ़त होती है। अधिकांश रसभरी की किस्में
समशीतोष्ण और हल्की ठंड के मौसम वाले क्षेत्र में अच्छी तरह बढ़ते हैं।
रसभरी के लिए आवश्यक मिट्टी-
रसभरी की फसल सबसे बेहतर चिकनी बलुई मिट्टी से लेकर तलछट मिट्टी
(पानी के बहाव से लायी हुई मिट्टी या रेत), जिसमें पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था हो,
में होती है। खराब पानी निकासी वाली भारी चिकनी मिट्टी वाली भूमि पर इसकी खेती करने
से बचना चाहिए क्योंकि इससे कुछ ही दिनों में जड़ में सड़न शुरू हो जाती है। रसभरी
के पौधे के लिए 6.0 से 7.0 पीएच वाली मिट्टी अनुकूल है और जिसमे अच्छी गुणवत्ता युक्त
भारी मात्रा में फसल पैदा होती है। अम्लीय गुणों वाली मिट्टी को चूना डालकर ठीक किया
जा सकता है। मिट्टी जांच के परिणाम के आधार पर सूक्ष्म पोषण तत्वों की कमी को दूर किया
जाना चाहिए। जमीन की तैयारी के सिलसिले में मिट्टी को और ऊर्वर बनाने के लिए जैविक
खाद मिलाना चाहिए।
रसभरी की खेती का मौसम-
सामान्यतौर पर नर्सरी के डिब्बे में उगाये गए रसभरी के पौधे को ठंड
या पाला का मौसम बीत जाने के बाद लगाना चाहिए। इन पौधों को नर्सरी के पौधे की तुलना
में एक ईंच ज्यादा गहरा लगाना चाहिए।
रसभरी की खेती के लिए जमीन की तैयारी-
रसभरी की खेती में जमीन या खेत की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है। रसभरी की खेती में मिट्टी से पानी की निकासी बहुत अहम होता है। रसभरी की
खेती में ऊपरी मिट्टी में जैविक खाद की अच्छी आपूर्ति होनी चाहिए और नीचे की मिट्टी
गहरी और अच्छी तरह से सूखी होनी चाहिए। ऐसे क्षेत्र जहां 2 से 3 साल से टमाटर, आलू,
बैगन, किसी भी तरह की मिर्च की खेती या ऐसी फसल जो मुरझा देने वाले फफूंद के संपर्क
में आसानी से आ जाती है,वहां रसभरी या रास्पबेरी की खेती की सलाह या अनुशंसा नहीं की
जाती है। रसभरी या रास्पबेरी के पौधारोपन से पहले, जमीन की तैयारी के सिलसिले में पिछली
फसल के सारे खर-पतवार को खत्म करना सुनिश्चित कर लें। मिट्टी अच्छी तरह मिल जाये इसके
लिए एक-दो बार खेत की जुताई कर लें।
रसभरी या रास्पबेरी की उत्पत्ति और पौधारोपन-
आमतौर पर, रसभरी या रास्पबेरी की उत्पत्ति जड़ से अंकुरण द्वारा
होता है। इन पौधों के जड़ का विभाजन तेज धार कुदाल और हाथ से किया जाता है। अच्छी नर्सरी
से मान्यता प्राप्त रोगमुक्त रास्पबेरी पौधा खरीदना सबसे अच्छा होता है। पारंपरिक तौर
पर, रास्पबेरी का पौधा जड़ समेत अच्छी तरह बड़ा और जड़ समेत बिकता है। रास्पबेरी नर्सरी
का एक साल पुराना पौधा या डिब्बे में लगे पौधे के तने की लंबाई जब 20 से 30 सेमी का
हो जाए तो उसे खेत में लगाया जा सकता है। अक्सर, रसभरी या रास्पबेरी के पौधों के बीच
दूरी एक लाइन के बीच 60सेमी और गलियारे के बीच 2.75मी होती है। आमतौर पर 15से 18 तना
प्रति मीटर होता है।
रसभरी या रास्पबेरी खेती में सिंचाई-
सिंचाई पूरी तरह मिट्टी के प्रकार और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता
है। हालांकि, सूखे क्षेत्र में रास्पबेरी की फसल को बार-बार सिंचाई की जरूरत पड़ती
है। अगर साप्ताहिक बारिश एक ईंच से कम हो तो पर्याप्त सिंचाई की जरूरत होती है। आमतौर
पर रास्पबेरी को सप्ताह में एक बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है। यह सुनिश्चित करें कि
फसल कटाई के बाद पर्याप्त सिंचाई की जाए। पानी की कमी की स्थिति में, ड्रिप सिंचाई
का इस्तेमाल किया जा सकता है। ड्रिप(बूंद-बूंद) और स्प्रिंकलर(फव्वारा) सिंचाई के लिए
स्थानीय प्रशासन की ओर से सब्सिडी या छूट की कुछ योजनाएं हैं। ड्रिप और स्प्रिंकलर
व्यवस्था की पूरी जानकारी के लिए स्थानीय बागबानी विभाग या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क
करें।
रसभरी या रास्पबेरी की खेती में खाद और ऊर्वरक-
रसभरी की फसल जैविक खाद और ऊर्वरक के इस्तेमाल पर बहुत अच्छा परिणाम
देती है। पौधे की अच्छी बढ़त के लिए ऊर्वरक के बेहतर इस्तेमाल की एक वार्षिक योजना
चलाई जानी चाहिए। प्रति वर्ष, प्रत्येक 10 फीट की लाइन पर 60 से 90 ग्राम नाइट्रोजन
का इस्तेमाल होना चाहिए। जैसे ही प्राइमोकेन बढ़ने लगता है तब पूरे का एक तिहाई इस्तेमाल
करें। एक तिहाई मई के अंत में और एक तिहाई जून के अंत में इस्तेमाल करना चाहिए। ऊर्वरक
के इस्तेमाल के बाद ब्रोडकास्टिंग मेथड यानी छिड़काव पद्धति का इस्तेमाल किया जाना
चाहिए। मिट्टी में ऊर्वरक के इस्तेमाल के ठीक बाद हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
मिट्टी की जांच के बाद अगर पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है तो उसे दूर किया जाना चाहिए।
जमीन की तैयारी के वक्त पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद के इस्तेमाल से अच्छी फसल पैदा
होती है।
रास्पबेरी की खेती की अंतरसांस्कृतिक कार्यप्रणाली-
टीला और क्यारियों (गलियारे) के बीच पनपने वाले खर-पतवार और प्राइमोकेन्स
पर नियंत्रण के लिए हल्की जुताई की जरूरत होती है। जड़ को नुकसान पहुंचने से रोकने
के लिए एक से डेढ़ ईंच से ज्यादा गहरी जुताई नहीं करें। मल्चिंग यानी गीली घास रखने
से नमी को प्राप्त रखने और खर-पतवार के बढ़ने पर रोक लगाने में सहायक होता है। पौधे
के बढ़ने के दौरान प्राइमोकेन्स की छंटाई नहीं करें। गर्मी के अंतिम दिनों में या फिर
पतझड़ के मौसम में पुराने और मृत फ्लोरिकेंन्स को हटा देना चाहिए। पौधे से सभी फलों
को तोड़ने के बाद फ्लोरिकेंस की कटाई-छंटाई करनी चाहिए।
रास्पबेरी की खेती में लगनेवाले रोग और कीट-पतंग-
रास्पबेरी की फसल कई कीट-पतंगों, परोपजीवी और रोगों के प्रति बेहद
संवेदनशील होते हैं। ये पौधे की वृद्धि और फसल की पैदावार को बुरी तरह से प्रभावित
करता है। रास्पबेरी की फसल में पाये जाने वाले कुछ सामान्य घातक कीट और बीमारी हैं–
रुट वीविल्स, लीफ रोलर लार्वा, स्पाइडर माइट्स, एफीड्स,पाउडर जैसा फफूंद, एंथ्रेकनोज,
वर्टीसिलियम विल्ट, और फाइटोफ्थोरा रुट रॉट। इनके लक्षणों और इन पर नियंत्रण के तरीके
जानने के लिए अपने स्थानीय बागबानी विभाग या कृषि विश्वविद्यालय में संपर्क करें।
नोट-
उपर उल्लेखित बीमारियां और उस पर नियंत्रण के लिए अपने स्थानीय बागबानी
या कृषि विभाग या कृषि विश्वविद्यालय रिसर्च सेंटर में संपर्क करें। इन बीमारियों के
लक्षण और उन पर नियंत्रण करने के लिए ये सबसे बेहतरीन श्रोत हैं।
रसभरी की कटाई-
रास्पबेरी का फल बहुत जल्द नष्ट होने वाला होता है इसलिए वक्त पर
इसकी कटाई बेहद जरूरी है। बाद में होने वाली कटाई फल की जिंदगी को तय करता है। रास्पबेरी
फल की कटाई रोज की जा सकती है। लगभग 60 से 65 फीसदी फल की मार्केटिंग बतौर ताजे फल
के रुप में की जा सकती है और 35 से 40फीसदी की मार्केटिंग फ्रोजन फ्रूट के तौर पर।
रसभरी की पैदावार-
फसल की पैदावार कई तत्वों पर निर्भर करती है, जैसे कि मिट्टी का
प्रकार, अलग प्रजाति और उद्यान प्रबंधन। दूसरे साल से प्रति 60 पंक्तिरुप सेमी से तीन
से चार किलोग्राम पैदावार होती है।
रसभरी का बाजार-
बतौर ताजा फसल के तौर पर इसे स्थानीय बाजार में बेचा जा सकता है।
और दूसरे रुप प्यूरी और फ्रोजन (जमा हुआ) फल के तौर पर इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में
निर्यात कर दिया जाता है।
Sir, I am a big fan of you, I see your post daily and get very good information. it, please approve it
ReplyDeletehttps://shivatechnical.com/kamathipura-mumbai/
https://shivatechnical.com/gb-road-delhi/
https://www.helplessminority.com/
http://amarujalas.com/technical-news/high-quality-backlink/
Nice article
ReplyDeletenice post sir .....
ReplyDeleteRasbhari In Hindi