नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक (Neel Green Algae Bio Fertilizer)
भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रखने तथा इसे बढ़ाने के लिए एक जैव
उर्वरक जो नील हरित शैवालों के संवर्धन से बनाया जाता है अति महत्वपूर्ण है। यह जैव
उर्वरक खरीफ सीजन 20-25 कि.ग्रा. नेत्रजन प्रति हे. करता है तथा मिट्टी के स्वास्थ्य
को ठीक रखता है। इसके अतिरिक्त भूमि के पानी संग्रह की क्षमता बढ़ाना एवं कई आवश्यक
तत्व पौधों को उपलब्ध कराता है। भूमि के पी.एच. को एक समान बनाये रखने में मदद करता
है तथा अनावश्यक खरपतवारों को पनपने से रोकता है। इसे जैव उर्वरक के लगातार प्रयोग
से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है तथा धान एवं गेहूं की उपज भी 5-10 प्रतिशत बढ़ती
है।
इस जैव उर्वरकों का प्रयोग कम से कम 70 कि.ग्रा./हे यूरिया बचत करता
है। जिससें अधिक यूरिया के अनावश्यक प्रयोग से भूमि उसर में नजदीक होने से बचाव होता
है। इतना उपयोगी जैव उर्वरक किसान अपने खेत खलिहान पर स्वयं बनाकर अपने खेतों में प्रयोग
कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अधिक मात्रा में उत्पादित करके धनोपार्जन भी कर सकता हैं।
इस जैव उर्वरक को विभिन्न तरीके से बनाया जा सकता है।
उत्पादन तकनीक-
नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक में मुख्यतया आलोसाइरा, टोलीपोथ्रिक्स,
एनावीना, नासटाक, प्लेक्टोनीमा नील हरित शैवाल होते है। ये शैवाल वायुमंडल के नेत्रजन
को लेकर नेत्रजन निबन्धन करते है। यह निबन्धित नेत्रजन धान के उपयोग में तो आता ही
है साथ में धान की कटाई के बाद लगायी जाने वाली अगली फसल को भी नेत्रजन तथा अन्य उपयोगी
तत्व उपलब्ध कराता है। उस जैव उर्वरक को बनाने के लिए प्रारम्भिक कल्चर कृषि विभाग
के जैव उर्वरक प्रकोष्ट/का.ही.वि.वि. के जैव प्रद्यौगिकी विद्यालय या वनस्पति विज्ञान
विभाग से प्राप्त किया जा सकता है। एक पैकेट प्रारम्भिक कल्चर से काफी मात्रा में जैव
उर्वरक बनाया जा सकता है पुनः इस बने हुए जैव उर्वरकों को संमबर्धित करके और अधिक मात्रा
में जैव उर्वरक बना सकते है। नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक निम्न लिखित विभिन्न तरीकों
से बनाया जा सकता है।
टैंक विधि-
1. 5 मीटर लम्बा, 1.5 मी. चौड़ा और 30 से.मी. गहरा पक्का गढ्ढा
(टंकि) ईट तथा सिमेन्ट की बनवा ले। हर टंकी में पानी भरने तथा पानी निकासी की व्यवस्था
बनवा दे। जिससे समयसे पानी भरने तथा टंकी से पानी निकालने में आसानी हो।
2. टंकियों में दोमट मिट्टी 1.5 कि.ग्रा.- 2.0 कि.ग्रा. प्रति मीटर
की दर से भूरभूरी करके डाल दे।
3. टंकियों में 10-12 से.मी. पानी भर दे तथा 200 ग्रा. सिंगल सुपर
फास्फेट प्रति हे. की दर से टंकी में डाल दे। यदि टंकी के पानी का पी.एच. साधारण पानी
के पी.एच यानि (7.0) से कम हो जाय तो आवश्यकतानुसार चूना डाल दें। ऐसा करने से टंकी
का पानी का पी.एच. बढ़ जायगा। अमूमन 200 ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट डालने से पानी के
पी.एच. में कोई ज्यादा कमी नही आती है।
4. टंकी में 50 ग्रा. कार्बेफयूरान/20-25 मि.ली. एन्डोसल्फान मिला
दे ताकि मच्छर या अन्य कीड़े मकोड़े टंकी के पानी में प्रजनन न कर सके।
5. उपरोक्त सभी चीजों को पानी में ठीक से मिलाने के बाद छोड़ दे
ताकि मिट्टी टंकी की सतह पर बराबर से बैठ जाय। इसके उपरान्त नील हरित शैवाल का प्रारम्भिक
कल्चर (कृषि विभाग या का.ही.वि.वि.) से लाकर 100 ग्रा. प्रति स्कॉयर मीटर की दर से
सावधानी पूर्वक पानी की सतह पर छिड़क दें।
6. 10 से 15 दिनों में मोटी नील हरित शैवाल की तरह पानी पर उग आयेगी
यदि इस दौरान टंकी में पानी की सतह 5 से.मी. से कम होता है तो पुनः पानी आवश्यकतानुसार
5-7 से.मी. तक भर दें।
7. नील हरित शैवाल की मोटी तह बन जाने पर (10-12 दिन के बाद) टंकी
के पानी को ड्रेन पाइप से बाहर निकाल दे या यदि पानी कम हो गया हो 2-3 से.मी. मात्र
हो तो धूप में ही छोड़ दें दो-दिन में अपने से ही सूख जायेगा। सूखने के बाद मिट्टी
के साथ नील हरित शैवाल की पपड़ी बन जायेगी। इस पपड़ी को खुरच कर पालीथीन के थैलों में
1 कि.ग्रा. 500 ग्रा. के पैकेट बना लें।
पुनः टंकियों में 10-12 से.मी. पानी भरकर खाद, कीटनाशी या अन्य आवश्यक
पदार्थ उपरोक्त वर्णित विधि के अनुसार डालकर 10-12 दिन बाद पुनः दूसरी खेप उत्पादित
कर ले। इस तरह हर साल में 20-25 का नील हरित जैविक खाद बना सकते है और खरीफ सीजन में
इन जैविक खादों का प्रयोग धान की उपज बढ़ाने तक भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में उपयोग
कर सकते है।
कच्चे गढ़्ढे की विधि-
यह विधि टंकी विधि के समान है इस विधि में पक्की टंकी की जगह कच्चे
गढ़्ढे बनाकर उसमें पालीथीन की सीट बिछा देते है। ताकि कच्चे गढ़्ढे से पानी रिस-रिस
कर सूख न जाय इस विधि में भी 5 मी. लम्बा x 1.5 मी. चौड़ा तथा 40 से.मी. गहरा कच्चा
गढ़्ढा बना लेते है। हर गढ़्ढे में पालीथीन की सीट बिछा देते है। प्रत्येक गढ़्ढे में
10-12 से.मी. पानी भर देते है तथा 1.5 - 2.0 कि. ग्रा. दोमट भूरभूरी मिट्टी और 200
ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट गढ़्ढे में छिड़क देते है। जब मिट्टी पालीथीन के उपर स्थिर
हो जाय तो गढ़्ढो में 100 ग्रा./स्कॉयर मी. की दर से प्रारम्भिक कल्चर लाकर बराबर से
छिड़क देतेहै। इस विधि में भी 10-12 दिनों से नील हरित शैवाल की मोटी परत बन जाती है।
12 दिनों के बाद गढ़्ढे के पानी को सूखने दे, जब पानी सूख जाय तो जैव उर्वरक की परत
मिट्टी के साथ खुरच कर 1 कि.ग्रा./500 ग्रा. के पालीथीन के थैलों में इक्कट्ठा कर लें।
उपरोक्त प्रक्रिया बार-बार दोहरा कर काफी मात्रा में जैव उर्वरक बना सकते है।
प्रक्षेय स्तर पर नील हरित जैव उर्वरक का उत्पादन-
दोमट मिट्टी वाले खेत में 40 स्कॉयर मी. समतल भूमि का चुनाव करे
तथा पानी भर के ठीक से पलेवा कर देते है। जिससे पानी का रिसाव भूमि में नीचे की ओर
कम हो जाय तथा प्रक्षेय में पानी लगा रहे। चयनित प्रक्षेय के चारों तरफ 30 से.मी. ऊँची
मेड़ी बना दे। मेड़ी डालने के बाद प्रक्षेय में 5-6 से.मी. पानी भर दें इतना पानी प्रक्षेय
में हमेशा जैव उर्वरक उत्पादन के समय लगा रहना चाहिए। इस प्रक्षेय में 12 कि.ग्रा सिगंल
सुपर फास्फेट तथा 250 ग्रा. कार्बोफ्यूरान बराबर से छिड़क दे। नील हरित शैवाल के प्रारम्भिक
कल्चर को पानी भरने तथा खाद व कीटनाशी छिड़कने के उपरान्त छिड़क दें। करीब 12-15 किग्रा./हे
की दर से प्रयोग करे। प्रक्षेय स्तर पर जैव उर्वरक का उत्पादन वाले खेत के पास ही करें।
जब तक नर्सरी तैयार होगी तब तक एक बार जैव उर्वरक भी प्रयोग के लिए तैयार हो जायेगा।
जैव उर्वरक उत्पादन में निम्नलिखित सावधानी बरते-
1. उत्पादन इकाई खूली धूप में बनानी चाहिए तथा अधिक समतल धरातल शैवालों
की वृद्धि के लिए प्रयोक्त होना चाहिए।
2. सिंगल सुपर फास्फेट एक बार में डालने पर कभी-कभी पानी का पी.एच.
कम हो जाता है। अतएव इस खाद को दौबारा प्रयोग करें।
3. नेत्रजन खाद का प्रयोग भूल करके भी टंकियो, गढ़्ढो या प्रक्षेय
जैव उर्वरक बनाते समय नहीं करना चाहिए। नेत्रजन खाद के पड़ने से शैवालों की वृद्धि
धीमी गति से होती है तथा इनकी नेत्रजन निबन्धन की गति धान के खेत में कम या खत्म हो
जाती है।
4. कीड़ों या मच्छरों को पानी की सतह पर पलने तथा प्रजनन होने कीट
नाशक के प्रयोग से रोके। अन्यथा नील हरित शैवालों की वृद्धि कम होती है।
5. अधिक पानी गढ़्ढों या खेत में नहीं भरना चाहिए अधिक पानी होने
पर जैव उर्वरक की पपड़ी तैयार होने में अधिक समय लग जाता है। प्रक्षेय विधि में दसवें
दिन के उपरान्त सामान्यतया पानी नहीं भरते है।
6. जब नील हरित शैवालों की मोटी तह बन जाय तभी पानी निकाल कर या
सूखाकर जैव उर्वरक की पपड़ी टंकी या गढ़्ढे या प्रक्षेय से खुरच कर निकाले।
जैव उर्वरक की प्रयोग विधि-
सूखी नील हरित शैवाल की पपड़ी को महिन चूर्ण बनाकर (12-15 कि.ग्रा./हे
की दर से) धान के रोपाई के 5-10 दिन के उपरान्त जब खेत में 2-5 से.मी. पानी लगा हो
तब बराबर से छिड़क दे। निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा में उस जैव उर्वरक का प्रयोग
फसल को हानि नहीं पहुचांता है।
जैव उर्वरक को कम से कम चार खरीफ सीजन तक अवश्य प्रयोग करें ताकि
मिट्टी की उर्वरा शक्ति तथा भूमि के लाभदायी जीवों की संख्या बढ़ जाय। इसके साथ साथ
भूमि की स्वास्थ्य अच्छी हो जाय। खेत में खरपतवार नाशी या कीट नाशक के उपरान्त ही जैव
उर्वरक का प्रयोग करें।
नील हरित शैवाल के उपयोग के बाद हल्की सिंगल सुपर फास्फेट खाद खेतों
में डालने से इन जैव उर्वरकों की वृद्धि अधिक होती है तथा ये अपनी क्षमता के अनुरूप
नेत्रजन निबन्धन करते है। यह ध्यान रखें कि बाद में प्रयुक्त की गयी फास्फेट खाद निर्धारित
मात्रा यानी सम्पूर्ण फास्फेटिक खाद (40 या 60 कि.ग्रा./हे) से अधिक न हो जाय।
जैव उर्वरक के आर्थिक लाभ-
1. यदि किसान स्वयं इस जैव उर्वरक को बनाये तो इसकी कीमत/मूल्य लगभग
नगण्य होती है तथा किसान की 25-30 कि.ग्रा. नेत्रजन यानी 70 कि.ग्रा. यूरिया की बचत/हे
हो सकती है।
2. इस जैव उर्वरक के प्रयोग से कल्ले अधिक बनते है तथा धान की वालियों में दानों का
भराव अच्छा होता है जिससे 5-7 कुन्तल/हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि हो जाती है।
3. अधिक मात्रा में यह जैव उर्वरक बनाकर उसे दूसरे लोगों को बेंचकर अतिरिक्त धन अर्जित
कर सकते है। यदि एक किसान 5x1.5x0.3 मीटर के आकार का 50 कच्चे गढ़्ढे बना ले तो हर
साल वह खर्चा काटने के बाद 25 हजार की आय प्राप्त कर सकता है। एक साल में करीब
15-16 बार नील हरित शैवाल वाली जैव उर्वरक उत्पादित कर सकता है। यदि पक्के गढ़्ढे/टैंक
बनवाकर जैव उर्वरक उत्पादित करता है तो पहले साल किसान को 10 हजार उसके उपरान्त 30
हजार प्रतिवर्ष की आय प्राप्त होगी ।
Jav urvrac banane ka kharcha kitna hoga?
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