आवश्यक जलवायु
पिस्ता की फसल के लिए मौसम की स्थिति
बेहद अहम तत्व है। पिस्ता के बादाम को दिन का तापमान 36 डिग्री सेटीग्रेड से ज्यादा
चाहिए। वहीं, ठंड के महीने में 7 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उनके शिथिल अवधि के लिए
पर्याप्त है। इसके पेड़ ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों पर ठंडे तापमान की वजह से अच्छी तरह
बढ़ नहीं पाते हैं। भारत में पिस्ता के नट्स यानी बादाम को बढ़ने के लिए जम्मू-कश्मीर
प्राकृतिक जगह है। पिस्ता के लिए आवश्यक
मिट्टी
पिस्ता की खेती कई तरह की मिट्टी में
हो सकती है। हालांकि इसके लिए अच्छी तरह से सूखी गहरी चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त मिट्टी
है। ऐसे पेड़ सूखे का आसानी से सामना करने में सक्षम हैं लेकिन जहां ज्यादा आर्द्रता
होती है वहां अच्छा नहीं कर पाते हैं। बड़े पैमाने पर पिस्ता की खेती करने के लिए मिट्टी
की जांच कराना काफी लाभदायक साबित होगा। जिस मिट्टी में पीएच की मात्रा 7.0 से 7.8
है वहां पिस्ता का पेड़ अच्छी किस्म का और ज्यादा मात्रा में पैदा होता है। ये पेड़
थोड़े कठोर जरूर होते हैं लेकिन उच्च क्षारीयता को काफी हद तक बर्दाश्त भी करते हैं।
जमीन की तैयारी
पिस्ता की खेती के लिए जमीन की तैयारी
में भी दूसरे नट या बादाम जैसी स्थिति होती है। जमीन की अच्छी तरह से जुताई, कटाई और
लाइन खींची होनी चाहिए ताकि अच्छी जुताई की स्थिति हासिल की जा सके। अगर मिट्टी में
6-7 फीट की लंबाई में कोई कठोर चीज है तो उसे तोड़ देना चाहिए। क्योंकि पिस्ता की जड़ें
गहरे तक जाती है और पानी के जमाव से प्रभावित होती है।
खेती में प्रसारण
सामान्यतौर पर पिस्ता के पेड़ को लगाने
के लिए अनुकूल पिस्ता रुटस्टॉक के जरिए पौधारोपन किया जाता है। इस रुट स्टॉक या पौधे
को नर्सरी में भी उगाया जा सकता है। सामान्यतौर पर पौधारोपन नीचे स्तर पर किया जाता
है और अंकुरित पेड़ को उसी साल या अगले साल लगा दिया जाता है। यह सब कुछ रुट स्टॉक
(पौधे) के आकार को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
पौधों के बीच
दूरियां
पौधारोपन के लिए बड़ा और पर्याप्त
गड्ढा खोदा जाना चाहिए ताकि इसकी जड़ें अच्छी तरह इसमे समा सके। सामान्यतौर पर नर्सरी
या डिब्बे के मुकाबले पिस्ता के पौधे को एक इंच नीचे लगाना चाहिए। और जब बात पौधों
के बीच दूरियों की आती है तो वह सिंचाई पर निर्भर करता है। अगर सिंचिंत बाग है तो ग्रिड
पैटर्न के लिए 6 मीटर गुणा 6 मीटर की दूरी रखी जानी चाहिए। वैसे इलाके जहां सिंचाई
की सुविधा उपलब्ध नहीं है वहां पौधों के बीच दूरी 8मीटर गुणा 10 मीटर होनी चाहिए। पिस्ता
के बादाम(नट) के लिए नर और मादा पेड़ को लगाना चाहिए और इसका अनुपात1:8(एक नर और आठ
मादा पेड़) से 1:10(एक नर और 10 मादा पेड़) का होना चाहिए।
सिंचाई
वैसे तो पिस्ता का पेड़ सूखे को बर्दाश्त
कर लेता है लेकिन उनकी देखभाल पर्याप्त नमी के साथ होनी चाहिए(जब उन्हें इसकी आवश्यकता
हो)। पानी हासिल करने के लिए गीले घास का इस्तेमाल एक बेहतर तरीका हो सकता है। पानी
का अच्छी तरह से उपयोग हो सके इसके लिए ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल किया जा सकता है।
यहां पानी के जमाव से भी बचना चाहिए। बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती
है। पिस्ता के लिए खाद और
ऊर्वरक
दूसरे बादाम(नट) पेड़ की तरह ही पिस्ता
को भी नाइट्रोजन की जरूरत होती है, क्योंकि बादाम जैसी फसल के लिए नाइट्रोजन एक महत्वपूर्ण
ऊर्वरक माना जाता है। हालांकि पौधे में पहले साल ऊर्वरक का इस्तेमाल नहीं किया जाना
चाहिए लेकिन उसके बाद अगले साल से की जा सकती है। आने वाले मौसम के दौरान प्रत्येक
पिस्ता के पौधे में 450 ग्राम अमोनियम सल्फेट की मात्रा दो भाग में डाली जानी चाहिए।
बाद के वर्षों में प्रति एकड़ 45 से 65 किलो वास्तविक नाइट्रोजन (एन) प्रयोग करना चाहिए।
आनेवाले मौसम के दौरान नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
पिस्ते की खेती में
कार्यप्रणाली-
पिस्ता के पेड़ को इस तरह तैयार किया
जाना चाहिए कि वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता जाए और उसका ओपन-वेस शेप में विकास हो। पेड़
के मध्य भाग को इस तरह खुला रखना चाहिए कि वो सूर्य की रोशनी को ग्रहण कर सके ताकि
अच्छी तरह से फूल खिल सके और बेहतर फल लग सके। ऐसी जरूररत चौथे या पांचवें शीत ऋतु
में पड़ सकती है। पेड़ों को पतला ऱखने के लिए दूसरे दर्जे की या कम महत्वपूर्ण शाखाओं
की छंटाई कर देनी चाहिए। एक बार जब पेड़ का ढांचा अच्छी तरह शक्ल ले ले तब हल्की-फुल्की
कटाई-छटाई की ही जरूरत पड़ेगी। पेड़ के स्वस्थ विकास और अच्छी किस्म के बादाम(नट) के
लिए खर-पतवार का नियंत्रण दूसरा कार्य है। इस बात को सुनिश्चित करें कि पेड़ों के बीच
अच्छी तरह सफाई रहे, नहीं तो जंगली घास पोषक तत्वों को हासिल करने के लिए संघर्ष करना
शुरू कर देते हैं। बर्म्स(berms) के लिए तृणनाशक प्रक्रिया या जंगली घास(पहले उगनेवाले
या बाद में उगनेवाले घास के लिए) को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए। पौधे
को गीले घास से ढंकने से खर-पतवार पर जहां नियंत्रण होता है वहीं, मिट्टी में पानी
की मात्रा बनी रहती है। खतरनाक कीट और रोग- घुन, स्टिंकबग और लीफ-फुटेड प्लांट बग
(कीड़ा) ये सभी सामान्य कीट-पतंगे हैं जो पिस्ता के उत्पादन के दौरान पाए जाते हैं।
पाउडर जैसा फफूंद, जंग, बाद में पड़नेवाला अल्टरनेरिया पाला, जड़ को सड़ानेवाला आर्मिलेरिया,
क्राउन गॉल, पिस्ता डायबैक, सेप्टोरिया लीफ स्पॉट, पेनिकल एंड शुट ब्लाइट, पिस्ता साइलिड
और पिस्ता ट्विग बोरर ये कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो पिस्ता की फसल में पाई जाती है।
इसके लक्षण क्या हैं और इस पर कैसे नियंत्रण किया जाए ये समझने के लिए स्थानीय बागबानी
विभाग में संपर्क करें। नोट- कीट पतंगों और बीमारियों के लक्षण और उस पर नियंत्रण करने
के तरीके जानने के लिए अपने स्थानीय बागबानी विभाग से संपर्क करें। पिस्ता की खेती
में इस तरह के मामले में कैसे नियंत्रण किया जाए और इसका समाधान क्या हो इसके लिए ये
विभाग बेहतरीन हैं।
पिस्ता की फसल की कटाई-
पिस्ता का पेड़ बादाम या नट के उत्पादन
के लिए काफी लंबा समय लेता है। इसके अंकुरित पेड़ अगले पांच साल तक फल देने के लिए
तैयार हो जाते हैं और पौधारोपन के 12 साल के बाद से पर्याप्त फल देना शुरू कर देते
हैं। (अंकुरण के पांच साल बाद पिस्ता का पेड़ फल देने लगता है। जब तक सातवां या आठवां
सीजन नहीं हो जाता है तब तक इस फसल की कटाई नहीं की जाती है। पहला पूरी तरह से फल उत्पादन
12वें साल के आसपास शुरू होता है)। जब इसके गोला से छिलका उतरने लगता है तब समझ लेना
चाहिए कि फल पूरी तरह तैयार हो गया है। आमतौर पर ये अवधि 6 से 10 दिनों तक बढ़ सकती
है। कटाई के दौरान सावधान रहने की जरूरत है और अविकसित केरनेल से बचना चाहिए। पिस्ता
की पैदावार- पिस्ता बादाम (नट) की पैदावार मौसम, किस्में और फसल प्रबंधन के तौर-तरीके
पर निर्भर करता है। पौधारोपन के 10 से 12 साल बाद पिस्ता का पौधा करीब 8 से 10 किलो
का उत्पादन करता है।
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