फूलगोभी की खेती पूरे वर्ष में की जाती है। इसको सब्जी, सूप और आचार
के रूप में प्रयोग करते है। इसमे विटामिन बी पर्याप्त मात्रा के साथ-साथ प्रोटीन भी
अन्य सब्जियों के तुलना में अधिक पायी जाती है फूलगोभी के लिए ठंडी और आर्द्र
जलवायु की आवश्यकता होती है यदि दिन अपेक्षाकृत छोटे हों तो फूल की बढ़ोत्तरी अधिक
होती है
फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फूल पत्तेदार और पीले
रंग के हो जाते है अगेती जातियों के लिए अधिक तापमान और बड़े दिनों की आवश्यकता होती
है फूल गोभी को गर्म दशाओं में उगाने से सब्जी का स्वाद तीखा हो जाता है | फूलगोभी
की खेती प्राय: जुलाई से शुरू होकर अप्रैल तक होती है
फूलगोभी की खेती के लिए भूमि:-
जिस भूमि का पी.एच. मान 5.5 से 7 के मध्य हो वह भूमि फूल गोभी के
लिए उपयुक्त मानी गई है अगेती फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी तथा
पिछेती के लिए दोमट या चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है साधारणतया फूल गोभी की खेती बिभिन्न
प्रकार की भूमियों में की जा सकती है
भूमि जिसमे पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद उपलब्ध हो इसकी
खेती के लिए अच्छी होती है हलकी रचना वाली भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद
डालकर इसकी खेती की जा सकती है
खेत की तयारी:-
पहले खेत को पलेवा करें जब भूमि जुताई योग्य हो जाए तब उसकी जुताई
2 बार मिटटी पलटने वाले हल से करें इसके बाद 2 बार कल्टीवेटर चलाएँ और प्रत्येक जुताई
के बाद पाटा अवश्य लगाएं |
फूलगोभी की उन्नत किस्मे:-
अगेती (तापमन 20-27 डिग्री सेंटी.)
|
मध्यम (तापमन 12-16 डिग्री सेंटी.)
|
पछेती (तापमन 10-16 डिग्री सेंटी.)
|
पूसा दिपाली
|
पूसा हाइब्रिड 2
|
पूसा स्नोबाल 1
|
पूसा कार्तिक
|
इम्प्रूव जापानी
|
पूसा स्नोबाल 2
|
पूसा अर्ली सेन्थेटिक
|
पंत शुभ्रा
|
पूसा स्नोबाल – के 1
|
पूसा कार्तिक संकर
|
पूसा शरद
|
पूसा स्नोबाल 16
|
पूसा मेघना
|
पंत गोभि -4
|
|
अर्का कांती
|
पूसा सेन्थेटिक
|
|
काशि कुवारी
|
पूसा हिम ज्योति
|
|
|
हिसार 1
|
|
फूलगोभी की बुआई के लिए बीज दर:-
फूल गोभी
|
बुवाई का समय
|
बीज दर (ग्राम / हेक्टेयर)
|
पोध एव पंक्ति की दुरी (सेंटी मीटर)
|
अगेती फसल
|
मई जून
|
500-600
|
45 x 45
|
मध्यकालीन
|
जुलाई अगस्त
|
350-400
|
50 x 50
|
पछेती
|
अक्टूम्बर नवम्बर
|
350-400
|
60 x 60
|
पौधशाला या नर्सरी:-
इसका बीज बारीक़ होता है अत: पहले उन्हें भली-भांति तैयार कि गई
पौधशाला में बोया जाता है ताकि थोड़े समय में उसकी पौध तैयार हो सके पौधशाला में 1
मीटर चौड़ी और 3 मीटर लम्बी क्यारियां बनाएं और दो क्यारियों के मध्य 30 से. मी. नाली
बनाएं
क्यारियां बनाने से पूर्व उनमे पर्याप्त मात्रा में गोबर कि खाद
या कम्पोस्ट खाद डाल दें फिर उसे मिटटी से भली-भांति मिला दें बीज को बुवाई से पहले
2 से 3 ग्राम कैप्टन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारीत कर लेना चाहिए। फिर क्यारियां
मे बुवाई करे।
जब पौधे निकल आएं तब क्यारियों के मध्य बनी नालियों से सिचाई करें
तेज धुप और अधिक वर्षा से पौधों को बचाने के लिए उस पर छप्पर का प्रबंध करें 4-5 सप्ताह
बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाएगी |
खाद एवं उर्वरक:-
फूल गोभी कि अधिक उपज लेने के लिए भूमि में पर्याप्त मात्रा में
खाद डालना अत्यंत आवश्यक है मुख्य मौसम कि फसल को अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्वों कि आवश्यकता
होती है इसके लिए एक हे. भूमि में 35-40 क्विंटल गोबर कि अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद
एवं 1 कु. नीम की खली डालते है रोपाई के 15 दिनों के बाद वर्मी वाश का प्रयोग किया
जाता है
रासायनिक खाद का प्रयोग करना हो 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा
60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए
सिचाई:-
रोपाई के तुरंत बाद सिचाई करें अगेती फसल में बाद में एक सप्ताह
के अंतर से, देर वाली फसल में 10-15 दिन के अंतर से सिचाई करें यह ध्यान रहे कि फूल
निर्माण के समय भूमि में नमी कि कमी नहीं होनी चाहिए |
खरपतवार नियंत्रण:-
फूल गोभी कि फसल के साथ उगे खरपतवारों कि रोकथाम के लिए आवश्यकता
अनुसार निराई- गुड़ाई करते रहे चूँकि फूलगोभी उथली जड़ वाली फसल है इसलिए उसकी निराई-
गुड़ाई ज्यादा गहरी न करें और खरपतवार को उखाड़ कर नष्ट कर दें |
फूल गोभी में कीट नियंत्रण:-
कटुवा इल्ली:-
यह गोभी के छोटे पौधों को रात्रि के समय बहुत नुकसान पहुचाते
है। इस कीट की सुंडीयां स्लेटी रंग की चिकनी होती है। व्यस्क शलभ गहरे भूरे रंग के
होते है एंव सुंडीयाँ आर्थिक नुकसान पहुँचाती है। इस कीट से लगभग 40 प्रतिशत तक नुकसान
हो जाता है।
नियंत्रण:-
प्रकाश प्रपंच का प्रयोग व्यस्क शलभों को पकडने के लिए करना
चाहिए। खेत में जगह-जगह अनुपयोगी पतियों का ढेर लगा कर इनमें शरण ली सूडियों को आसानी
से नष्ट किया जा सकता है। खेत के चारों ओर 20-25 से.मी. गहरी चौडी नाली खोद देनी चाहिए
ताकी सूंडिया गिरकर एकत्र हो जायेगी और सुबह इन्हे आसानी से नष्ट किया जा सकता है।
फोरेट (10 जी) की 10 कि.ग्रा मात्रा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से बुवार्इ के साथ प्रयोग
करें।
माहू:-
यह छोटे आकर के हरे पीले पंखदार व पंखविहीन कीट होते है। इस
कीट के शिशु एवं व्यस्क दोनों ही पतितयों से रस चूसते है। जिससे पतितयाँ पीली पड़ जाती
है। उपज का बाजार मूल्य कम हो जाता है। माहो अपने शरीर से मधु रस उत्सर्जित करते है
जिस पर काली फफं;दी विकसित हो जाती है जिससे पौधों पर जगह जगह काले धब्बे दिखार्इ देतें
है। इस कीट से लगभग 20-25 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है।
नियंत्रण:-
परभक्षी कीट लेडी बर्ड बीटल (काक्सीनेला स्पी.) को बढावा दें।
मैलाथियान 5 प्रतिशत या कार्बेरिल 10 प्रतिशत चुर्ण का 20 से 25 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर
की दर से भुरकाव करे या मिथाइल डिमेटान (25 र्इ.सी.) या डार्इमिथोएट (30 र्इ.सी.)
1.5 मि.ली. प्रति ली. पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए।
हीरक पृष्ठ पतंगा (डाइमंड बैक मौथ):-
दुनियाभर में इस कीट से गोभीवर्गीय सब्जियों को अत्यधिक नुकसान
हो रहा है। इस कीट की इल्लियां पीलापन लिये हुये हरे रंग की और शरीर का अगला भाग भूरे
रंग का होता है एवं व्यस्क, घूसर रंग का होता है । जब यह बैठता है तो इसके पृष्ट भाग
पर 3 हीरे की तहर चमकीले चिन्ह दिखार्इ देते है। इसी वजह से इसे हीरक पृष्ट पंतगा कहते
है। नुकसान पहुँचाने का काम इल्लियां करती है। जो पत्तियों की निचली सतह को खाती है
और उनमें छोटे छोटे छिद्र बना देती है। अधिक प्रकोप होने पर छोटे पौधे मर जाते है।
बडे़ पौधो पर फूल छोटे आकार के लगते है। इस कीट से लगभग 50-60 प्रतिशत तक नुकसान हो
जाता है।
नियंत्रण:-
हीरक पृष्ठ शलभ के रोकथाम के लिये बोल्ड सरसों को गोभी के
प्रत्येक 25 कतारों के बाद 2 कतारों में लगाना चाहिये। डीपेल 8 एल. या पादान (50 र्इ.सी.)
का 1000 मि.ली. की दर से प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें। स्पाइनोशेड़ (25 एस. सी.)
1.5 मि.ली.ली. या थायोडार्इकार्ब 1.5 गा्र.ली. की दर से या बेसिलस थूरीजेंसिस कुस्टकी
(बी.टी.के.) 2 गा्र.ली. के दर से 500 ग्राम प्रति हैक्टेयर के दो छिड़काव करें। छिडकाव
रोपण के 25 दिन व दूसरा इसके 15 दिन बाद करे।
तंबाकु की इल्ली:-
इस कीट के पतंगे गहरे भूरे रंग के व आगे के पंखों पर सफेद
धारीया होती है। जिसके बीच में काले धब्बे पाये जाते है। यह पतगें रात को बहुत सक्रिय
होते है। प्रांरभिक अवस्था में सुंडीयाँ हरे रंग की होती है। जो पत्तों को खुरच कर
खाती है। बडी अवस्था में सुडियाँ पत्तों को गोल- गोल काट कर खाती है। गोभी के शीर्षो
और गाँठों में यह सुडियाँ ऊपर से घुसकर नुकसान करती है। मादा व्यस्क पतितयों की निचली
सतह में समूह मे अण्ड देती है। इस कीट से लगभग 30-40 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है।
नियंत्रण:-
अण्डे के समूहों को एकत्र कर नष्ट करना चाहिये। न्यूक्लियर
पालीहाइडोसिस वायरस 250 एल. र्इ.हेक्टेयर की छिडकाव करें। मेलाथियान 2 मि.ली. प्रति
लीटर या स्पाइानेशेड 25 एस. सी. को 15 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से
10-15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करना चाहिए।
अर्धकुंडलक कीट (सेमीलूँपर):-
यह बहुभक्षी कीट है यह चलते समय अर्धकुंडलाकार रचना बनाते
है। इस कीट की इलिलयां हरे रंग की होती है एवं शरीर पर सफेद रंग की धारियां होती है।
इल्लियां पतितयों को खा जाती है परिणाम स्वरूप केवल शिराएँ ही रह जाती है। इस कीट के
आक्रमण से लगभग 30-60 प्रतिशत उपज में कमी आ जाती है।
नियंत्रण:-
प्रारभिक अवस्था में सुडीयाँ समूह में रहती है। अत: इन्हे
पतितयो समेत नष्ट कर देना चाहिए। प्रकाश प्रपंच का प्रयोग व्यस्क शलभो को पकडने के
लिए करना चाहिए। मेलाथियान (50 र्इ.सी.) को 1.5 मि.ली. प्रति ली. की दर से पानी में
घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
गोभी की तितली:-
यह मध्यम आकार की पीलापन लिए हुए सफेद रंग की होती है और बाद
में वृद्वि होने पर यह हरापन लिए पीले रंग की हो जाती है। तितली की इल्लियां शीर्ष
पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाती है। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों की सिर्फ शिराएँ
रह जाती है।
नियंत्रण:-
प्रतिरोधी किस्मे लगानी चाहिए जैसे बन्दगोभी में र्इ.सी.
24856 एवं सेवाय बेस्ट आल। मेलाथियान (50 र्इ.सी.) को 1.5 मि.ली. प्रति ली. की दर से
पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
सरसों की आरा मक्खी:-
यह कीट मध्यम आकार की मक्खी की तरह व्यस्क होता हैं इसका शरीर
नारंगी, सिर काला व पंख स्लेटी रंग के होते है। मादा अपने आरीनुमा अंड निक्षेपक से
पतितयों के किनारे चीर कर अंडे देती है। इस कीट की ग्रब अवस्था हानिकारक होती है। भंृगक
पतितयाँ खाते हैं और अधिक प्रकोप होने पर सिर्फ शिराएँ रह जाती है। भृंगक फूल के शीर्ष,
भीतरी भाग या फिर डंठलों के बीच के भाग को खाकर, उसमें अपशिष्ट पदार्थ छोडने पर जीवाणु
आक्रमण करते है।
नियंत्रण:-
सुबह के समय इलिलयों को हाथ से पकडकर नष्ट करें। मेलाथियान
(50 र्इ.सी.) को 1.5 मि.ली. प्रति ली. की दर से पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
प्रमुख व्याधियाँ एव प्रबंधन:-
आद्र गलन रोग:-
इस रोग का प्रकोप गोभी में नर्सरी अवस्था में होता है। इसमे
जमीन की सतह वाले तने का भाग काला पडकर गल जाता है। और छोटे पोधे गिरकर मरने लगते हैं।
नियंत्रण:-
बुआर्इ से पूर्व बीजों को 3 ग्राम थाइरम या 3 ग्राम केप्टान
या बाविसिटन प्रति किलों बीज की दर से उपचारित कर बोयें। नर्सरी, आसपास की भूमि से
6 से 8 इंच उठी हुर्इ भूमि में बनावें। मृदा उपचार के लिये नर्सरी में बुवार्इ से पूर्व
थाइरम या कैप्टान या बाविस्टिन का 0.2 से 0.5 प्रतिषत सांद्रता का घोल मृदा मे सींचा
जाता है जिसे ड्रेंचिंग कहते है। रोग के लक्षण प्रकट होने पर बोडों मिश्रण 5:5:50 या
कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कार छिडकाव करें।
भूरी गलन या लाल सड़न:-
यह रोग बोरान तत्व की कमी के कारण होता है। गोभी के फूलों
पर गोल आकार के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। और फूल को सडा देते है।
नियंत्रण:-
रोपार्इ से पूर्व खेत में 10 से 15 किलो बोरेक्स प्रति हैक्टेयर
की दर से भुरकाव करना चाहिए या फसल पर 0.2 से 0.3 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का छिड़काव
करना चाहिए।
तना सड़न (स्टाक राट):-
रोग की प्रारंभिक अवस्था में दिन के समय पौधे की पतितया लटक
जाती है। और रात्रि में पुन: स्वस्थ दिखार्इ देती है। तने के निचले भाग पर मृदा तल
के समीप जल सिक्त धब्बे दिखार्इ देते है। धीरे-धीरे रोगग्रसित भाग पर सफेद कवक दिखार्इ
देने लगती है व तना सडने लग जाता है। इसे सफेद सड़न भी कहते है।
नियंत्रण:-
बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
डायथेन एम-45, 2.0 ग्राम व बाविस्टिन 1 ग्राम को मिलाकर 15 दिन के अन्तराल पर जब फूल
बनना प्रारभ हो 3 छिड़काव करें।
काला सड़न रोग:-
इस
बीमारी के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों के किनारो पर 'वी आकार में हरिमाहीन एवं पानी में
भीगे जैसे दिखार्इ देते है। तथा पत्तियों की शिराएँ काली दिखार्इ देती है। उग्रावस्था
में यह रोग गोभी के अन्य भागों पर भी दिखार्इ देता है। जिससे फूल के डंठल अन्दर से
काले होकर सडनें लगते हैं।
नियंत्रण:-
बीजों को बुंवार्इ से पूर्व स्टेप्टोसाइक्लिन 250 मि.ग्रा.
या एवं बाविस्टिन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 घंटे उपचारित कर छाया में सुखाकर
बुवार्इ करें। पौध रोपण से पूर्व जडों को स्टे्रप्टोसाइकिलन एंव बाविसिटन के घोल में
1 घटें तक डूबाकर लगावें तथा फसल में रोग के लक्षण दिखने पर उपरोक्त दवाओं का छिड़काव
करना चाहिए।
मुलायम/ नरम सडन (साफ्ट राट):-
यह रोग पौधे की विभिन्न अवस्थाओं में दिखार्इ देता है। यह
मुख्य रूप सें काला सड़न रोग के बाद या फूल पर चोट लगने पर अधिक होता है।
नियंत्रण:-
रोगग्रसित फूलों को तोडकर नष्ट कर देना चाहिए, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन
200 मि.ग्रा. व कापर आक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति ली. पानी में मिलाकर 15 दिन के अन्तराल
पर छिड़काव करना चाहिए।
झुलसा रोग या अल्टनेरिया पानी धब्बा रोग:-
इस रोग से पत्तियों पर गोल आकार के छोटे से बडे़ भूरे धब्बे
बन जाते है। और उनमें छल्लेनुमा धारियाँ बनती है। अन्त में धब्बे काले रंग के हो जाते
है।
नियंत्रण:-
मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।
काला धब्बा (ब्लेक स्पाट):-
यह कवक जनित रोग है। प्रारंभ में छोटे काले धब्बे पतितयों
पर व तने पर दिखाइ देते है। जो बाद में फूल को भी ग्रसित कर देते है।
नियंत्रण:-
डायथेन एम 45 के 3 छिड़काव 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब
से 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
मृदुरोमिल (डाउनी मिल्डयू):-
यह रोग पोधे की सभी अवस्थाओं में आता है व काफी नुकसान करता
है। इसमें पत्तियो की निचली सतह पर हल्के बैंगनी से भूरे रंग के धब्बे दिखार्इ देते
है।
नियंत्रण:-
रिडोमिल एम. जेड.-72 एक ग्राम प्रति लीटर की दर से या डायथेन
एम.- 45, 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर 10 से 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव
करें।
जड गांठ (रूट नाट):-
इस रोग से पौधों की जडा़ में गोलकृमि के सक्रंमण से गांठे
पड जाती है। जिससे पौधे की वृद्वि रूक जाती हैं पत्तियो पर झुर्रियाँ पड़ जाती है।
तथा पत्तियाँ पीली व जडे़ मोटी दिखार्इ देती है। जिससे पौधों पर फल कम संख्या में तथा
छोटे लगते है।
नियंत्रण:-
मर्इ-जून में खेत की गहरी जुतार्इ कर दें। फसल चक्र अपनाना
चाहिए। मेंड़ के चारो तरफ गेंदा के पौधे लगाना चाहिए। बुवार्इ से पूर्व खेत में 25
किवंटल नीम की खाद प्रति हैक्टेयर डालकर मिलाना चाहिए व एल्डीकार्ब 60-65 कि.ग्रा.
प्रति हैक्टेयर की दर से पौधे रोपने के पूर्व खेत में मिला देनी चाहिए।
कटाई:-
फूल गोभी कि कटाई तब करें जब उसके फूल पूर्ण रूप से विक़सित हो जाएँ
फूल ठोस और आकर्षक होना चाहिए जाति के अनुसार रोपाई के बाद अगेती 60-70 दिन, मध्यम
कटाई
फूल गोभी कि कटाई तब करें जब उसके फूल पूर्ण रूप से विक़सित हो जाएँ फूल ठोस और आकर्षक
होना चाहिए
जाति के अनुसार रोपाई के बाद अगेती 60-70 दिन, मध्यम 90-100 दिन
, पछेती 110-180 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है |
उपज:-
यह प्रति हे. 200-250 क्विंटल तक उपज मिल जाती है |
भण्डारण:-
फूलों में पत्तियां लगे रहने पर 85-90 % आद्रता के साथ 14.22 डिग्री
सेल्सियस तापमान पर उन्हें एक महीने तक रखा जा सकता है ||
फूलगोभी में दैहिक या कायिक विकार:-
ब्राउन स्पोट:-
क्षारीय और अधिक अम्लीय भूमि में पत्तियां और फूल पीले पड़ जाते
है पुरानी पत्तियों का नीचे कि ओर मुड़ जाना और तनों का खोखला हो जाता है इसकी रोकथाम
के लिए भू-पावर या माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट या माइक्रो गोल्ड उपयोग करें |
बटनिंग या बोल्टिंग:-
फूलों के पकने से पूर्व फूल छोटे रहकर फटने लगते है और पौधे का विकास
भी सामान्य नहीं होता अगेति जातियों को देर से बोने पर यह भी कमी उत्पन्न हो जाती है
इसका मुख्य कारण नाइट्रोजन का अभाव है |
इसकी रोकथाम के लिए माइक्रो झाइम का या माइक्रो भू-पावर का छिडकाव
करें |
व्हिप टेल:-
अम्लीय भूमि में पौधों कि मोलिबडिनम पर्याप्त न मिलने के कारण पत्र
दल का उचित विकास न होकर केवल मध्य शिरा का ही विकास होता है इसकी रोकथाम के लिए भू-पावर,माइक्रो
फर्टी , माइक्रो गोल्ड का इस्तेमाल करें |