Monday, 2 October 2017

वैज्ञानिक विधि से भिंडी की खेती कैसे करें

वैज्ञानिक विधि से भिंडी की खेती कैसे करें (How to grow ladyfinger by scientific method)


https://smartkhet.blogspot.com/2017/10/farming-of-bhindi.html         , Bhindi (ladyfinger) plant photos



भिंडी एक महत्वपूर्ण फल वाली उष्ण भागों और शीतोष्ण प्रदेश्‍ो के गर्म स्‍थानों पर उगाया जाने वाली सब्जि है। इसकी फसल उन स्‍थानों पर प्रमुखता से उगाई जा सकती है जहां दिन का तापमान 25-40 ड़िग्री सेग़्रे क़े बीच मे रहता है तथा रात्रि का तापमान 22 ड़िग्री सेग़्रे से नीचे नहीं आता है। भिंडी को इसके हरे, मुलायम स्वादिष्ट फलों के लिए उगाया जाता है।

भारत में मुख्य रूप से भिंडी की दो फसलें ली जाती है, एक गर्मी में व दूसरी बरसात के मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी एक ही फसल ली जाती है। जिसकी बुवाई मार्च-अप्रेल में की जाती है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल लेने के कुछ अतिरिक्त फायदे है, इस मौसम में आमतौर पर दूसरी सब्जियां कम उपलब्ध होने के कारण बाजार मूल्य अच्छा मिलता है तथा दूसरा इस मौसम मे मोजेक रोग का प्रकोप बहुत ही कम होता है अत: इस मौसम में भिंडी की वे किस्मे भी बो सकते है जो कि मोजेक के प्रति सवेदनशील होती है। इस प्रकार ग्रीष्मकालीन भिंडी के उत्पादन की उन्नत तकनीकी को अपनाकर अधिक लाभ्‍ प्राप्त कर सकते है।

भिंडी के खेत का चयन व तैयारी:-

भिंडी की फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमियों मे उगाया जा सकता है। लेकिन गर्मियों की फसल के लिए भारी दोमट मिटटी अधिक उपयुक्त रहती है। क्योकि इस भूमि मे नमी अधिक समय तक बनी रहती है। बरसात वाली फसल के लिए बलुई दोमट भूमि का चुनाव करना चाहिए जिसमें जल निकास अच्छा हो। खेत की एक बार मिटटी पलटने वाले हल से तथा तीन चार बार हैरो या देशी हल से जुताई करके मिटटी को भूरभूरा बनाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। बुवाई के समय खेत में उपयुक्त नमी होनी अति आव5यक है, यदि भूमि में नमी की कमी हो तो खेत की तैयारी से पूर्व एक सिंचाई अवय कर लेनी चाहिए।

भिंडी की उन्नत किस्में:-

हमारे देश में भिंडी की बहुत सी उन्नत एवं रोग अवरोधी किस्मो का विकास किया गया है जिनमे से प्रमुख किस्मे इस प्रकार है।

पुसा सावनी:-

 यह किस्म पहले पीला मोजेक रोग के प्रति अवरोधी थी लेकिन अब यह सुग्र्राही बन चुकी है। यह एक अच्छी किस्म है और आज भी इसे उत्तर भारत के मेदानी क्षेत्रो में ग्रीष्म ऋतु में उगाया जाता है। जायद में बुवाई के 40-45 दिन बाद फूल व फल प्राप्त होने लगते है।

पूसा मखमली:-

 यह एक अगेती किस्म है। इसके फल मुलायम, सीधे हलके हरे रंग के, लम्बे नुकीले पतले होते है। ग्रीष्मकाल में उत्तरी भारत के मैदानों में अच्छी पैदावार देती है। इस किस्म की ओसत उपज 80-100 क्विटल प्रति हैक्टर हैं

पंजाब पदमनी:-

 यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षैत्रो में ग्रीष्म तथा बरसात दोनों मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म पीला मोजेक रोग के प्रति अवरोधी है तथा इस पर जैसिड और कपास कीट का प्रकोप कम होता है इसकी औसत उपज 100-125 क्विटल प्रति हैक्टर होती है।

परभनी क्रांति:-

 यह किस्म पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी है। इस किस्म में बुवाई के 40 - 45 दिन बाद फूल आना प्ररम्भ हो जाता है इसकी औसत उपज ग्रीष्म ऋतु में 85 - 90 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा बरसात में 120 -130 क्विंटल प्रति हैक्टर पायी गयी है।

पंजाब-7:-

 यह पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी किस्म है ग्रीष्म ऋतु में इसकी उपज 50 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा बरसात के मौसम में 95 क्विंटल प्रति हैक्टर पायी गयी है।

अर्का अनामिका:-

 यह एक पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी किस्म है इस किस्म में बुवाई के 45 दिन बाद फल आना प्रारम्भ होता है तथा पहली तुडाई 55 दिन में की जा सकती है। यह एक अच्छी पैदावार देने वाली किस्म है। जिसके हरे फलों की उपज 115 क्विटल प्रति हैक्टर होती है।

भिंडी की बुवाई का समय:-

जायद वाली फसल की बुवाई फरवरी के द्वितीय सप्ताह से मार्च के अन्त तक की जा सकती है।

भिंडी की बीज दर:-

जायद के मौसम में अंकुरण कम होने के कारण अधिक बीज की आवश्‍यकता होती है। अत: एक हैक्टयेर के लिए 18 - 20 किग़्रा बीज की आवश्‍यकता होती है।

भिंडी के लि‍ए भूमि उपचार:-

खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई के साथ कटुआ कीट के नियंत्रण के लिए भूमि मे दानेदार फयूराडान 25 किग़्रा अथवा थिमेट (10 जी) 10-15 किग़्रा प्रति हैक्टर की दर से मिला लेना चाहिए।

भिंडी बीज उपचार-

बुवाई के पहले बीज को 24 घंटे पानी मे भिगो लें तत्पश्‍चात बीजो को निकाल कर कपडे की थेली में बाधकर गर्म स्‍थान पर रख दे तथा अंकुरण होने लगे तभी बुवाई करें बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिए बुवाई से पूर्व थायरम या कैप्टान (2 से 3 ग्राम दवा प्रति किग़्रा) से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए।

भिंडी की बुवाई:-

गर्मी या जायद की फसल के लिए कतार से कता की दूरी 30 सेमी व पौधे से पौधे दूरी 15 सेमी रखना चाहिए। वर्षा ऋतु की फसल हेतु कतार की दूरी 45-60 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 30-45 सेमी रखना चाहिए।

भिंडी मे खाद व उर्वरक:-

खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि में उपस्थित पौषक तत्वों की निर्भर करती है। 15 से 20 टन सडी गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के 25 से 30 दिन पूर्व खेत मे मिला लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त 40 किग्रा नत्रजन, 40 किग़्रा फ़ॉस्फोरस व 40 किग़्रा पोटाश्‍ा को प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय देना चाहिए तथा खडी फसल में 40 से 60 किग़्रा नत्रजन को दो बराबर भागो मे बांटकर पहली मात्रा बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद पहली निराई गुडाई के समय तथा दूसरी मात्रा फसल में फूल बनने की अवस्था मे देना लाभप्रद है।

भिंडी मे सिंचाई:-

गर्मी के मौसम में आवश्यकतानुसार 6-7 दिनो के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए अन्यथा नमी के अभाव में पौधे सूखने लगते है।

भिंडी मे निराई गुडाइ:-

फसल में 2-3 बार निराई गुडाई करके खरपतवारों को निकाल देना चाहिए। जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ भूमि मे वायु संचार भी ठीक रहेगा।

भिंडी मे फसल सुरक्षा-

पीला मौजेक:-

 ये रोग सफेद मक्खी द्वारा फेलाया जाता है। इसका प्रकोप होने पर पत्तियों की शिराएं पीली हो जाती है। बाद में फल सहित पूरा पौधा पीला हो जाता है सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए रोगार या मैटासिस्टाकस (01 प्रतिशत) का छिडकाव पौधे उगने के बाद से ही 10-12 दिन के अन्तराल पर करते रहना चाहिए।

चूर्णी फफूदी रोग:-

 रोगग्रस्त पौधों पर सफेद पाउडर जैसी हल्की पर्त जमा हो जाती है। पत्तियां पीली पड जाती है तथा धीरे धीरे गिरने लगती है। पौधों पर कैराथेन (006 प्रतिशत) का छिडकाव 10-15 दिन के अन्तराल पर दो से तीन बार करना चाहिए।

फल छेदक कीट:-

 यह कीट बढते हुए फलों में छेद करके फलों को हानि पहुंचाता है। इसका लार्वा फलों में छेद करता है पौधों पर थायोडान (02 प्रतिशत) का छिडकाव 10-12 दिन के अन्राल पर दो तीन बार करना लाभकारी होता है।

कटुआ कीट:-

 यह कीट पौधें के उगने के समय पौधे को नीचे से काट देता है, जिससे पौधा सूख जाता है इससे बचाव के लिए दानेदार फयूराडान 25 किग़्रा अथवा थिमेट (10 जी) 10 से 15 किग़्रा मात्रा प्रति हैक्टयेर की दर से खेत की तैयारी के समय मिटटी में मिला देना चाहिए।

फलो की तुडाई:-

इस फसल में तुडाई के समय का बहुत महत्व है। फल अधिक समय तक पौधों पर रहने या तुडाई मे देरी से फलों में रेश्‍ो की मात्रा बढ़ जाती है तथा फलों की कोमलता कम हो जाती है। जिससे फलों का स्वाद कम हो जाता है। अत: फलो को एक दिन के अन्तराल पर तुडाई करते रहना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण:-

खरपतवार नियंत्रण हेतु बेसालीन 25 लीटर रसायन को बुवाई के 4 दिन पूर्व या लासों 5 लीटर रसायन को बुवाई के बाद प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए।

उपज:-

वैज्ञानिक विधि से भिंडी की खेती करने से 100-120 क्विटल प्रति हैक्टर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

No comments:

Post a Comment