उड़द की उन्नत खेती (Improved cultivation of Blackgram (Urad))
हमारे देश में उड़द का उपयोग मुख्य रूप से दाल के लिये किया जाता
है। इसकी दाल अत्याधिक पोषक होती है। विशेष तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसे लोग
अधिक पसन्द करते है। उड़द को दाल के साथ-साथ भारत में भारतीय व्यंजनों को बनाने में
भी प्रयुक्त किया जाता है तथा इसकी हरी फलियाँ से सब्जी भी बनायी जाती है।
उड़द का दैनिक आहार में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। जिसमें प्रोटीन,
कार्बोहाइड्रेट, फाइबर कैल्शियम व विटामिन बी काम्पलेक्स तथा खनिज लवण भी बहुतायत पाये
जाते है। इसके साथ - साथ अन्य दालो की तुलना में 8 गुणा ज्यादा फास्फोरस अम्ल के अलावा
आरजिनीन, ल्यूसीन, लाइसीन, आइसोल्यूसीन आदि एमिनो एसिड के पूरक सम्बन्ध के कारण जैव
वैज्ञानिक मान अत्याधिक बढ़ जाता है।
उड़द की जड़ो में गाठो के अन्दर राइजोबियम जीवाणु पाया जाता है जो
वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधे का नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है। इसलिए
उड़द की फसल से हरी खाद भी बनायी जाती है, जिसमें लगभग 40-50 किग्रा. प्रति हेक्टेयर
नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
उड़द, देश की एक मुख्य दलहनी फसल है इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ
में की जाती है लेकिन जायद मे समय से बुवाई सघन पध्दतियो को अपनाकर भारत में उड़द मैदानी
भाग उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाण, मध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार तथा राजस्थान
में मुख्य रूप से की जाती है। कार्य सांख्यिकी प्रभाग अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय
के अनुसार 2004-2005 में भारत में कुल उड़द का उत्पादन 1.47 मिलियन टन था जो
2015-16 में बढ़कर 2.15 मिलियन टन हो गया है तथा 2016-17 के अग्रिम अनुसार 2.93 मिलियन
टन कुल उड़द का उत्पादन रखा गया है।
उड़द की फसल के लिए जलवायु :-
उड़द एक उष्ण कटिबन्धीय पौधा है इसलिए इसे आर्द्र एवं गर्म जलवायु
की आवश्यकता होती है उड़द की खेती के लिये फसल पकाते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती
है, जहाँ तक भूमि का सवाल है समुचित जल निकास वाली बुलई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए
सबसे उपयुक्त मानी जाती है लेकिन जायद में उड़द की खेती में सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
उडद के खेत की तैयारी :-
खेत में पहले जुताई हैरो से करने के बाद दो-तीन जुताई कल्टीवेटर
से पता लगाकर खेत तैयार कर लेते है। खेत की तैयारी करते समय एक कुन्तल जिप्सम का प्रयोग
करने पर अलग से सल्फर देने की जरूरत नहीं पड़ती है जिप्सम का प्रयोग करने पर मिट्टी
मूलायम हो जाती है। भूमि की दशाओं में सुधार होता है।
उडद की उन्नत किस्में
उन्नतशील प्रजातियां / किस्म
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अवधि (दिन में)
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उपयुक्त क्षैत्र
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विवरण
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उपज (क्वि./हे.)
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टी.-9
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70 - 75
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उ.प्र., म.प्र., महा., उड़ीसा, आसाम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, हि.प्र.
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सभी ऋतुओ के लिए उपयुक्त
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10 - 12
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पंत यु- 19
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80 - 85
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राज., आसाम, बिहार, उ.प्र., ज. ओर क., पं. बंगाल
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पीला मोजैक रोग रोधी
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10 - 12
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पंत यु- 30
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80 - 85
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आ.प्र., दादरा एवं न हे, गुजरात, उड़िसा, उ.प्र.
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पीला मोजैक रोग रोधी
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10 - 12
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जे. वाई. पी.
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80 - 90
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उ.प्र.
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खरीफ व रबी दोनो मौसम के लिए उपयुक्त
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10 - 12
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यु. जी. - 218
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78
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उ.प्र., पंजाब, हरियाणा, दिल्ली
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पीला मोजैक रोग रोधी
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15
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उड़द बुवाई के लिए बीज दर :-
उड़द अकेले बोने पर 15 से 20 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर तथा मिश्रित
फसल के रूप में बोने पर 8-10 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर काम में लेना चाहिए।
उडद बोने की विधि और समय :-
बसन्त ऋतु की फसल फरवरी-मार्च में तथा खरीफ ऋतु की फसल जून के अन्तिम
सप्ताह या जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक बुवाई कर देते है। चारे के लिए बोई गई फसल छिड़कवाँ
विधि से बुवाई की जाती है तथा बीज उत्पादन हेतु पक्तियाँ में बुवाई अधिक लाभदायक होती
है।
प्रमाणित बीज को कैप्टान या थायरम आदि फफूदनाशक दवाओं से उपचारित
करने के बाद , राइजोबियम कल्चर द्वारा उपचारित करके बुआई करने से 15 प्रतिशत उपज बढ़
जाती है।
उडद बीज का राइजोबियम उपचार :-
उड़द दलहनी फसल होने के कारण अच्छे जमाव पैदावार व जड़ो में जीवाणुधारी
गाँठो की सही बढ़ोतरी के लिए राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित करना जरूरी होता है।
1 पैकेट (200 ग्राम) कल्चर 10 किलोग्राम बीज के लिए सही रहता है। उपचारित करने से पहले
आधा लीटर पानी का 50 ग्राम गुड़ या चीनी के साथ घोल बना ले उस के बाद में कल्चर को मिला
कर घोल तैयार कर ले। अब इस घोल को बीजों में अच्छी तरह से मिला कर सुखा दे। ऐसा बुवाई
से 7-8 घण्टे पहले करना चाहिए।
उडद की फसल में खाद एवं उर्वरक :-
उड़द दलहनी फसल होने के कारण अधिक नत्रजन की जरूरत नहीं होती है क्याेंकि
उड़द की जड़ में उपस्थित राजोबियम जीवाणु वायुमण्डल की स्वतन्त्र नत्रजन को ग्रहण करते
है और पौधो को प्रदान करते है। पौधे की प्रारम्भिक अवस्था में जब तक जड़ो में नत्रजन
इकट्ठा करने वाले जीवाणु क्रियाशील हो तब तक के लिए 15-20 किग्रा नत्रजन 40-50 किग्रा
फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय खेत में मिला देते
है।
उर्वरक उपयोग एवं संयोग (कि./हे.) :-
नत्रजन
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फास्फोरस
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पोटाश
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संयोग - 1
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संयोग - 2
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संयोग - 3
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20
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50
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40
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डि.ए.पी. - 108.7
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एस.एस.पी. - 312.5
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टि.एस.पी. - 104.17
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युरिया - 0.95
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युरिया - 43.48
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युरिया - 43.48
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एम.ओ.पी. - 66.66
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एस.ओ.पी. - 80
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एम.ओ.पी. - 66.66
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उडद की फसल में सिंचाई :-
ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 10-15 दिन में आवश्यकतानुसार सिंचाई की
जाती है। तथा वर्षा ऋतु में सुखा पड़ने की स्थिति में 2-3 बार कुल सिंचाई की आवश्यकता
पड़ती है।
उडद में खरपतवार नियन्त्रण :-
वर्षा कालीन उड़द की फसल में खरपतवार का प्रकोप अधिक होता है जिससे
उपज में 40-50 प्रतिशत हानि हो सकती है। रसायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियन्त्रण के
लिए वासालिन 1 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के घोल का बुवाई के पूर्व
खेत में छिड़काव करे। फसल की बुवाई के बाद परन्तु बीजों के अंकुरण के पूर्व पेन्डिमिथालीन
1.25 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
अगर खरपतवार फसल में उग जाते है तो फसल बुवाई 15-20 दिन की अवस्था पर पहली निराई तथा
गुड़ाई खुरपी की सहायता से कर देनी चाहिए तथा पुन: खरपतवार उग जाने पर 15 दिन बाद निंदाई
करनी चाहिए।
उडद के फसल चक्र एवं मिश्रित खेती :-
उड़द की वर्षा ऋतु में उड़द की फसल प्राय: मिश्रित रूप में मक्का,
ज्वार, बाजरा, कपास व अरहर आदि के साथ उगते है।
उड़द के साथ अपनाये जाने वाले साधन फसल चक्र निम्नलिखित है-
सिंचित क्षेत्र:
उड़द - सरसों
, उड़द - गेहूँ
असिंचित क्षेत्र:
उड़द-पड़त-मक्का
, उड़द-पड़त-ज्वार
कीट और कीट की रोकथाम :-
सफेद मक्खी :-
यह उड़द का प्रमुख कीट
है जो पीला मोजेक वायरस का वाहक के रूप में कार्य करती है।
देखभाल :-
ट्रायसजोफॉस 40 ई.सी. का 1 लीटर का 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव
करें।
इमिडाक्लोप्रिड की 100 मिलीलीटर या 51 इमेथोएट की 25 लीटर मात्रा
को 500 लीटर पानी में घोल मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
अर्ध कुंडलक (सेमी लुपर) :-
यह
मुख्यत: कोमल पत्तियों को खाकर पत्तियों को छलनी कर देती है।
देखभाल :-
प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 1 लीटर का 500 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव
करते है।
फली छेदक कीट :-
इस कीट की सूडियां फलियों
में छेद कर दानो को खाती है। जिससे उपज में भारी नुकशान होता है
देखभाल :-
मोनोक्रोटोफास का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी
में घोल बनाकर छिड़काव करें।
एफिड :-
यह मुलांकूर के रस को चुसता
है जिससे पौधे की वृध्दि रूक जाती है।
देखभाल :-
क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 500 मिलीलीटर 1000 लीटर पानी के घोल में
मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
रोग और उनकी रोकथाम :-
पीला मोजेक विषाणु रोग :-
यह
रोग वायरस द्वारा फैलता है तथा यह उड़द का सामान्य रोग है तथा इसका प्रभाव 4-5 सप्ताह
बाद ही दिखाई देने लगते है। रोग के सबसे पहले लक्षण पत्तियों पर गोलाकार पीले रंग के
धब्बे दाने के आकार दिखाई देते हैं । कुछ ही दिनों में पत्तियाँ पूरी पीली हो
जाती है अंत में ये पत्तियाँ सफेद सी होकर सूख जाती है।
देखभाल :-
सफेद मक्खी की रोकथाम से रोग नियंत्रण
सम्भव है। उड़द की पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी किस्म पंत यु-19, पंत यु-30, यु जी-218,
टी.पी.यू.-4, पंतउड़द-30, बरखा, के.यू.-96-3 की बुवाई करनी चाहिए।
पत्ती मोड़न रोग :-
नई पत्तियो पर हरिमाहीनता
के रूप में पत्ती की मध्य शिराओं पर दिखाई देते हें। इस रोग में पत्तियां मध्य शिराओं
से उपर की और मुड़ जाती हैं। तथा निचें की पत्तिया अंदर की और मुड़ जाती हैं। तथा पत्तियों
की वृध्दि रूक जाती हैं। और पौधे मर जाते हैं।
देखभाल :-
यह विषाणु जनित रोग हैं। जिसका संचरण
थ्रीप्स द्वारा होता हैं। थ्रीप्स के लिए ऐसीफेट 75 प्रतिशत एस.पी. या 2 मि.ली. डाईमैथोएट
प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए तथा फसल की बुआई समय पर करनी चाहिए।
पत्ती धब्बा रोग :-
यह
रोग फफँद द्वारा फैलता है, इसके लक्षण पत्तियाँ पर छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई
देते है।
देखभाल :-
कार्बेन्डाजिम 1किग्रा 1000 लीटर
पानी के घोंल में मिलाकर स्प्रे कर दिया जाता है।
उडद की फसल की कटाई और मड़ाई :-
उड़द लगभग 85-90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है इसलिए ग्रीष्म ऋतु
की कटाई मई-जुन में तथा वर्षा ऋतु की कटाई सित.-अक्टु. में फलियो का रंग काला पड़ जाने
पर हसियाँ से कटाई करके खलियानो में फसल को सुखाते है बाद में बेल या, डण्डो या थ्रेसर
से फलियों से दानों निकाल लिया जाता है।
उडद की उपज :-
10-15 कुन्टल प्रति हेक्टेयर शुध्द फसल में तथा मिश्रित फसल में
6-8 कुन्टल प्रतिहेक्टेयर उपज हो जाती है।
भण्डारण :-
दानो को धुप में सुखाकर 10-12 प्रतिशत नमी हो जाए, तब दानों को बोरीयाँ
में भरकर गोदाम में संग्रहित कर लिया जाता है।
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