Saturday 9 September 2017

औषधीय फसल अफीम की खेती

औषधीय फसल अफीम की खेती (Cultivation of medicinal crop opium)



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पोस्त फूल देने वाला एक पौधा है जो पॉपी कुल का है। पोस्त भूमध्यसागर प्रदेश का देशज माना जाता है। यहाँ से इसका प्रचार सब ओर हुआ। इसकी खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्की आदि देशों में मुख्यत: होती है। भारत में पोस्ते की फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में बोई जाती है। पोस्त की खेती एवं व्यापार करने के लिये सरकार के आबकारी विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है। पोस्ते के पौधे से अहिफेन यानि अफीम निकलती है, जो नशीली होती है।

जलवायु

अफीम की फसल को समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियम तापमान की आवश्यकता होती है।

भूमि

अफीम को प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है परन्तु उचित जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली मध्यम से गहरी काली मिट्टी जिसका पी.एच. मान 7 हो तथा जिसमें विगत 5-6 वर्षों से अफीम की खेती नहीं की जा रही हो उपयुक्त मानी जाती है।

खेत की तैयारी

अफीम का बीज बहुत छोटा होता है अत: खेत की तैयारी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए खेत की दो बार खड़ी तथा आड़ी जुताई की जाती है। तथा इसी समय 20-30 गाड़ी अच्छी प्रकार से सड़ी गोबर खाद को समान रूप से मिट्टी में मिलाने के बाद पाटा चलाकर खेत को भुरा-भुरा तथा समतल कर लिया जाता है। इसके उपरांत कृषि कार्य की सुविधा के लिए 3 मी. लम्बी तथा 1 मी. चौड़ी आकार की क्यारियां तैयार कर ली जाती हैं।

प्रमुख किस्में

जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 एवं जवाहर अफीम-540 आदि मध्य प्रदेश के लिए अनुसंशित किस्में हैं

बीज दर तथा बीज उपचार-


 कतार में बुवाई करने पर 5-6 कि.ग्रा. तथा फुकवा बुवाई करने पर 7-8 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीप्रति किलो बीज में 10 ग्राम नीम का तेल  मिलाकर  उपचारित करने के बाद ही बोयें |

बुवाई समय

अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक आवश्यक रूप से कर दें।

बुवाई विधि

बीजों को 0.5-1 से.मी. गहराई पर 30 से.मी. कतार से कतार तथा 0-9 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए बुवाई करें।

निरा- गुड़ाई तथा छटाई

निरा- गुड़ाई एवं छटाई की प्रथम क्रिया बुवाई के 25-30 दिनों बाद तथा दूसरी क्रिया 35-40 दिनों बाद रोग व कीटग्रस्त एवं अविकसित पौधे निकालते हुए करनी चाहिए। अन्तिम छटाई 50-50 दिनों बाद पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. तथा प्रति हेक्टेयर 3.50-4.0 लाख पौधे रखते हुए करें।

खाद एवं उर्वरक

अफीम की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक की अनुशंसित मात्रा का उपयोग करें। इस हेतु वर्षा ऋतु में खेत में लोबिया अथवा सनई कि हरी खाद बोना चाहिए। हरी खाद नहीं देने की स्थिति में 20-30 गाड़ी अच्छी प्रकार से सड़ी हुई गोबर खाद खेत की तैयारी के समय दें। इसके अतिरिक्त यूरिया 38 किलो, सिंगल सुपरफास्फेट 50 किलो तथा म्यूरेट आफ पोटाश आधा किलो गंधक/10 भारी के हिसाब से डालें।

सिंचाई

बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें, तदोपरान्त 7-10 दिन की अवस्था पर अच्छे अंकुरण हेतु, तत्पश्चात 12-15 दिन के अन्तराल पर मिट्टी तथा मौसम की दशा अनुसार सिंचाई करते रहें। कली, पुष्प, डोडा एवं चीरा लगाने के 3-7 दिन पहले सिंचाई देना नितान्त आवश्यक होता है। भारी भूमि में चीरे के बाद सिंचाई न करें एवं हल्की भूमि में 2 या 3 चीरे के बाद सिंचाई करें। टपक विधि से सिंचाई करने पर आशाजनक परिणाम प्राप्त होते हैं।

फसल संरक्षण

रोमिल फफूंद

जिस खेत में एक बार रोग हो जाए वहां अगले तीन साल  तक अफीम नही बोयें | रोग कि रोकथाम हेतु नीम का काढ़ा ५०० मिली लीटर प्रति  पम्प   और   माइक्रो झाइम २५ मिली लीटर प्रति पम्प पानी में  अच्छी तरह घोलकर  के तीन बार कम से कम तर बतर कर छिड़काव करे छिड़काव  बुवाई के तीस, पचास, एवं सत्तर दिन  के बाद करें |    

चूर्णी फफूंद

फ़रवरी में ढाई किलो गंधक का घुलनशील चूर्ण  प्रति हेक्टेयर कि डर से छिड़काव करें |

डोडा लट

फूल आने से पूर्व व डोडा लगने के बाद माइक्रो झाइम ५०० मिली लीटर प्रति हेक्टेयर ४०० या ५०० लीटर  पानी में मिलाकर तर बतर कर छिड़काव करे   |धिक उपज के लिए ध्यान दे
बीजोपचार कर बोवनी करे।
समय पर बोवनी करे, छनाई समय पर करे।
फफूंद नाशक एवं कीटनाशक दवाएं निर्घारित मात्रा में उपयोग करें।
कली, पुष्प डोडा अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करे।
नक्के ज्यादा गहरा न लगाएं।
लूना ठंडे मौसम में ही करें।
काली मिस्सी या कोडिया से बचाव के लिए दवा छिड़काव 20-25 दिन पर अवश्य करे।
हमेशा अच्छे बीज का उपयोग करे।
समस्या आने पर तुरंत रोगग्रस्त पौधों के साथ कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सम्पर्क करे।
खसखस उत्पादन के लिए डोड़ा पूर्ण पकने पर ही कटाई करे।
इनका कहना
अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान बीजोपचार कर, समय पर बोवनी करें, साथ ही मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का उपयोग करे।

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