Sunday 3 September 2017

रजनीगंधा एक लाभकरी खेती

रजनीगंधा एक लाभकरी खेती (Rajnigandha farming a beneficiary)



रजनीगंधा सुगन्धित फूलों वाला पौधा है। यह पूरे भारत में पाया जाता है। रजनीगंधा का पुष्प फनल के आकार का और सफेद रंग का लगभग 25 मिलीमीटर लम्बा होता है जो सुगन्धित होते हैं।रजनीगन्धा के फूल को कहीं कहीं 'अनजानी', 'सुगंधराजऔर उर्दू में गुल--शब्बोके नाम से पहचाना जाता हैअंगरेजी और जर्मन भाषा में रजनीगन्धा को 'टयूबेरोजा', फ़्रेंच में 'ट्यूबरेयुजइतालवी और स्पेनिश में 'ट्यूबेरूजाकहते हैं।रजनीगंधा का फूल अपनी मनमोहक भीनी-भीनी सुगन्धअधिक समय तक ताजा रहने तथा दूर तक परिवहन क्षमता के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता   है 

जलवायु :-
यह कंद (बल्बसे उगाया जाने वाला पौधा है और हर किस्म की साफ़ मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। विशेषकर यह बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी में अधिक उगता है।
रजनीगंधा की व्यावसायिक खेती पश्चिमी बंगालकर्नाटकतामिलनाडु और महाराष्ट्रउत्तरप्रदेशहरियाणापंजाबतथा हिमाचल प्रदेश होती है  रजनीगंधा के पौधे 80-95 दिनों में फूलने लगते हैं  मैदानी क्षेत्रों में अप्रैल से सितम्बर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जून से सितम्बर माह में फूल निकलते हैं  ऐसी जगहों पर जहां दिन और रात के तापमान में अत्याधिक अन्तर  हो पूरे साल उगाया जाता है 
रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है परन्तु औसत  जलवायु  में पुरे वर्ष भर में भी लगाया जा सकता है .प्रके मैदानी भागों में यह सम शीतोष्ण मौसम में अप्रैल से नवम्बर तक आसानी से उगाया जा सकता है रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए उपयुक्त तापक्रम २०-३० डिग्री से.ग्रेहै |

भूमि का चुनाव और तैयारी :-  
रजनीगंधा की खेती समस्त हलकी से भारी (जो हलकी अम्लीय या क्षारीय है ) में की जा सकती है अच्छे वायु संचार एवं जल निकास युक्त .-. पी.एचमान वाली बलुअर दोमट अथवा दोमट भूमि अति उपयुक्त होती है खेत की अच्छी तैयारी एवं जल निकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है |रजनीगंधा के लिये भूमि का चुनाव करते समय 2 बातों पर विशेष ध्यान दें।
 पहलाखेत या क्यारी छायादार जगह पर  होयानी जहां सूर्य का प्रकाश भरपूर मिलता हो।
 दूसराखेत या क्यारी में जल निकास का उचित प्रबंध हो। सब से पहले खेतक्यारी  गमले की मिट्टी को मुलायम  बराबर कर लेंचूंकि यह कंद बीज वाली किस्म हैअतकंद के समुचित विकास के लिये खेत की तैयारी विधिवत होनी चाहिए। खासकर मिट्टी को खरपतवार रहित कर लेंअन्यथा निराई करने में बडी कठिनाई होगी।

प्रजातियां : फ़ूल के आकारप्रकारपत्तियों के रंग के अनुसार इसे 3 वर्गो में बांटा गया है:
सिंगल : मैक्सिकन सिंगलमैक्सिकन एवरब्लूमिंग तथा कलकत्ता सिंगल के फ़ूल सफ़ेद रंग के होते हैं तथा इन में पंखडियों की केवल एक ही पंक्ति होती है।

डबल :  कलकत्ता डबल सफ़ेद फ़ूल तथा पंखडियों का ऊपरी सिरा हलका गुलाबी रंग लिए होता है। पंखडियां कई पंक्तियों में सजी होती हैंजिस से फ़ूल का केंद्रबिंदु दिखाई नहीं देता।

अर्धडबल : स्वर्णलता यह डबल किस्म की तरह ही हैपरंतु पंखडियों की संख्या कमकेवल 4-5 की पंक्ति होती है।
 इस की पंक्तियों के आकर्षक रंगो एवं विविधता के कारण ही इसे क्रमशस्वर्णरेखा और रजतरेखा के नामों से जाना जाता है।  
बीज बुवाई :-
इसके कंदों का रोपण मार्च अप्रैल या मई के महीने तक किया जा सकता है परन्तु साल भर फूल लेने के लिए प्रत्येक १५ दिन के अन्तराल पर कंद रोपण भी किया जा सकता है  कंद का आकार 2 सेंटीमीटर व्यास का या इस से बडा होना चाहिए। हमेशा स्वस्थ और ताजे कंद ही इस्तेमाल करें।
 बल्ब को उसके आकार तथा भूमि की संरचना के अनुसार - सेमीकी गहराई पर तथा २०-३० से.मिलाइन  से लाइन और और १०-१२ से.मि बल्ब से बल्ब के बिच की दुरी पर रोपण करना चाहिए रोपण करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होना चाहिए एक हेक्षेत्रफल में लगभग १२००-१५०० किलो ग्राम कंदों की आवश्यकता होगी है |
खाद और उर्वरक डालना : 
रजनी गंधा की फसल में फूलों की अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे आवश्यक मात्रा में आर्गनिक खाद,कम्पोस्ट खाद का होना जरुरी है इसके लिए एक एकड़ भूमि में २५-३० टन गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद देना चाहिए ।बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन 3 बार देना चाहिए।
 एक तो रोपाई से पहलेदूसरी इस के करीब 60 दिन बाद तथा तीसरी मात्रा तब दें जब फ़ूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बादकंपोस्टफ़ास्फ़ोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें।
सिचाई :बल्ब रोपण के समय पर्याप्त नमी होना आवश्यक है जब बल्ब के अंखुए निकलने लगे तब सिचाई से बचाना चाहिए गर्मी के मौसम में फसल में - दिन तथा सर्दी के मौसम में १०-१२ दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिचाई करें सिचाई की योजना मौसम की दशा फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए |
खरपतवार नियंत्रण :-
आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक बार खुरपी की मदद से हाथ द्वारा खरपतवार निकालना या निराई-गुड़ाई करना चाहिए |

कीट नियंत्रण :-
रजनी गंधा में कीड़े एवं बीमारियाँ नहीं लगती है कीट नियंत्रण के लिए नीम का काढ़ा  गौमूत्र  के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.लीप्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करना चाहिए |

कटाई /खुदाई :
रजनी गंधा में - माह के बाद फूल आते है कटफ्लावर प्राप्त करने के लिए  पूरी स्पाईक पौधे से काटकर अलग करते है स्पाईक काटने से पूर्व उस पर एक या दो जोड़े फूल खिल जाने पर ही उसे काटे |
लूज फूलों और उनसे तेल पाप्त करने के लिए उन्हें स्पाईक से तब जोड़े जब फूल पूरी तरह से खिले हो |
औसतन प्रति दिन - फ्लोरेट / स्पाईक तोडा जा सकता है इस प्रकार ५० किलो फ्लोरेट प्रति हेकाटा जा सकता है |

उपज :-
प्रथम वर्ष में फूलों की पैदावार १५०-२०० क्विंटल प्रति हेके आसपास रहती है जबकि दुसरे वर्ष में २००-२५० क्विंटल तक होती है इसके बाद पैदावार घट जाती है रजनी गंधा की फसल से - लाख स्पाईक प्रति हेया १५-२० टन लूज फ्लावर और १५-२० टन प्रति हेबल्ब तथा लेट्स अतिरिक्त आमदनी देते है |

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