करेला लता जाति
की स्वयंजात और
कषि जन्य वनस्पति
है। इसे कारवेल्लक,
कारवेल्लिका, करेल, करेली तथा
काँरले आदि नामों
से भी जाना
जाता है। करेले
की आरोही अथवा
विसर्पी कोमल लताएँ,
झाड़ियों और बाड़ों
पर स्वयंजात अथवा
खेतों में बोई
हुई पाई जाती
है। इनकी पत्तियाँ
५-७ खंडों
में विभक्त, तंतु
(ट्रेंड्रिल, tendril) अविभक्त, पुष्प पीले
और फल उन्नत
मुलिकावाले (ट्यूबर्किल्ड, tubercled) होते हैं।
कटु तिक्त होने
पर भी रुचिकर
और पथ्य शाक
के रूप में
इसका बहुत व्यवहार
होता है। चिकित्सा
में लता या
पत्र स्वरस का
उपयोग दीपन, भेदन,
कफ-पित्त-नाश
तथा ज्वर, कृमि,
वातरक्त और आमवातादि
में हितकर माना
जाता है। जलवायु
करेला के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है करेला अधिक शीत सहन कर लेता है परन्तु पाले से इसे हानी होती है |
करेला के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है करेला अधिक शीत सहन कर लेता है परन्तु पाले से इसे हानी होती है |
भूमि
इसको बिभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवांश युक्त हलकी दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है वैसे उदासीन पी.एच. मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी रहती है नदियों के किनारे वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है कुछ अम्लीय भूमि में इसकी खेती की जा सकती है पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाएँ |प्रजातियाँ:
पूसा 2 मौसमीकोयम्बूर लौंग|
अर्का हरित
कल्याण पुर बारह मासी
हिसार सेलेक्शन
सी 16
पूसा विशेष
फैजाबादी बारह मासी
आर.एच.बी.बी.जी. 4
के.बी.जी.16
पूसा संकर 1
पी.वी.आई.जी. 1
बीज बुवाई
बीज की मात्रा:
5-7 किलो ग्राम बीज प्रति हे. पर्याप्त होता है एक स्थान पर से 2-3 बीज 2.5-5. मि. की गहराई पर बोने चाहिए बीज को बोने से पूर्व 24 घंटे तक पानी में भिगो लेना चाहिए इससे अंकुरण जल्दी, अच्छा होता है |बोने का समय
बुवाई का समय 15 फरवरी
से 30 फरवरी (ग्रीष्म
ऋतु) तथा 15 जुलाई
से 30 जुलाई (वर्षा
ऋतु)
बुवाई की विधि एवं दिशा बुवाई 2 प्रकार से
की जाती है।
(1) सीधे बीज द्वारा
(2) पौध रोपण द्वारा
खाद एवं उर्वरक
करेला की फसल में अच्छी पैदावार लेने के लिए उसमे आर्गनिक खाद, कम्पोस्ट खाद का होना अनिवार्य है इसके लिए एक हे. भूमि में लगभग 40-50 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से गली, सड़ी हुई खाद 50 किलो ग्राम नीम की खली इनको अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण तैयार कर खेत में बोने से पूर्व इस मिश्रण को खेत में समान मात्रा में बिखेर दें इसके बाद खेत की अच्छे तरीके से जुताई करें खेत तैयार कर बुवाई करें |और जब फसल 25-30 दिन नीम का काढ़ा को गौमूत्र के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर छिडकाव करें की हर 15 व 20 दिन के अंतर से छिडकाव करें |
या
25 से 30 टन सड़ी
हुई गोबर की
या कम्पोस्ट खाद
खेत में बुवाई
से 25-30 दिन पहले
तथा बुवाई से
पूर्व नालियों में
50 किग्रा. डी.ए.पी., 50 किग्रा. म्यूरेट
आॅफ पोटाश प्रति
हैक्टेयर के हिसाब
से जमीन में
मिलाए। बाकी नत्रजन
30 किग्रा. यूरिया बुवाई के
20-25 दिन बाद व
इतनी ही मात्रा
50-55 दिन बाद पुष्पन
व फलन की
अवस्था में डाले।
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